कहाँ मैं पड़ गया छन्दों पदों में।
 भट गायन में दरबारी हदों में।।
मुझे छोटा किया है शीर्षकों ने
बिठाकर के मुझे ऊँचे कदों में।।
शरीफों वाइजों में लुट ही जाती
बची है उसकीअस्मत शोहदों में।।
ये छोटे हैं मगर दिल से बड़े हैं
अधिकतर तंगदिल हैं ओहदों में।।
मुहब्बत मौसिकी ,हो शायरी हो
ये कब बांधे बंधी हैं सरहदों में।।
फलक के पार जैसे जा रहा हूँ
कोई  जन्नत हैं नादों-अनहदों में।।

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