वक्त कितना ठहर ठहर गुजरा।
साथ तेरे जो मुख़्तसर गुजरा।।
उसकी मंज़िल ख़ुदा न जान स्का
जो मुहब्बत की रहगुजर गुजरा।।
अब तो जन्नत में ही मिलूँ शायद
मैकदे में जो आज कर गुज़रा।।
तेरे दीदार की तड़प लेकर
मर गया जो भी बेसबर गुजरा।।
तेरी चाहत में सौ जनम कम थे
 मेरे जैसा भी इक उमर गुज़रा।।
वो मेरा आखिरी सफर होगा
तेरे कूचे से मैं अगर गुजरा।।
इश्क़ मेरा जुनूँ की हद मेरी
तू गया और मैं इधर गुजरा।।
और आजिज़ हुए सवालों से
क्या कहाँ कौन कब किधर गुजरा।।
रात को नींद दिन में चैन नही
ऐसी हालत से उम्रभर गुजरा।।

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