जाने किस बोझ से दबे चेहरे।
कब खिलेंगे बुझे बुझे चेहरे।।

नदी सूखी है ताल सूखे हैं
रह गए हैं तो सूखते चेहरे।।

आईने कैसे साफ़ दिखलाते
गर्द से धूल से सने चेहरे।।

वो मेरी अहमियत समझते हैं
कह रहे हैं बने ठने चेहरे।।

जान जाती है फिर बिकेगी वो
जब भी दिखते हैं कुछ नए चेहरे।।

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