#मित्र2
कितनी बात बदलते हो तुम ।
कितनी बार बदलते हो तुम।।
शतरंजी  घोड़े  से ज्यादा
आड़ा तिरछा चलते हो तुम।।
मौसम की कुछ मर्यादा है
पर वेवक्त मचलते हो तुम।।
संभाषण का आश्रय लेकर
कितना जहर उगलते हो तुम।।
तनिक डकार नही लेते हो
कैसे बजट निगलते हो तुम।।
गिरगिट भी आश्चर्यचकित है
इतने रंग बदलते हो तुम।।
घर बाहर बाजार कचहरी
चौराहों पर मिलते हो तुम।।
सुनकर ये हैरान बहुत हूँ
आस्तीन में पलते हो तुम।।
छले गए तुम साफ झूठ है
खुद छलना को छलते हो तुम।।
जग की रपटीली राहों पर
कैसे यार सम्हलते हो तुम।। #मित्र

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