जब कलम थकने लगे तब क्या लिखें।
सच न लिख पाएं तो कुछ भी ना लिखें।।

उनके कहने से लिखा तो क्या लिखा
हमने जो देखा सुना वैसा लिखा

अब नहीं कुछ भी दिखा तो क्या लिखें।।

लेखनी को राज्य आश्रय किसलिए
सत्य लिखने में कोई भय किसलिए

डर के लिखना है तो बेशक  ना लिखें।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है