रोज ढलेंगे रोज उगेंगे कभी अँधेरे कभी उजाले।
अंधियारा हों उजियारा हों कब रुकते हैं रुकने वाले।।
हथियारों की होड़ लगी हो, भले सरों की भीड़ लगी हो
लश्कर देख नहीं डरते हैं ,धर्म युद्ध के लड़ने वाले।।
डरने वाले डरा करेंगे, एक नहीं सौ बार मरेंगे
किन्तु सदा जीवित रहते हैं, हंसते हँसते मरने वाले।।
अंधियारा हों उजियारा हों कब रुकते हैं रुकने वाले।।
हथियारों की होड़ लगी हो, भले सरों की भीड़ लगी हो
लश्कर देख नहीं डरते हैं ,धर्म युद्ध के लड़ने वाले।।
डरने वाले डरा करेंगे, एक नहीं सौ बार मरेंगे
किन्तु सदा जीवित रहते हैं, हंसते हँसते मरने वाले।।
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