हाँ!  मशमूरे-खता रहे हैं।
हम तो खुद ही बता रहे हैं।।
उनकी दाल नही गल पायी
इसीलिए बौखला रहे हैं।।
वो पत्थर के रहेंगे हमको
माटी में जो मिला रहे हैं।
गीता जैसा ज्ञान सभी को
गोविन्द जी खुद सुना रहे हैं।।
मेरे जैसे अज्ञानी को
ज्ञानी मिलकर सता रहे हैं।
मूढ़मती है हम जो सबको
दिल की बातें बता रहे हैं।।
(एक निम्नस्तरीय बहस से साभार )

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