ज़िन्दगी क्या है किराये का कोई घर ही तो है।
और मकाँ-मालिक भी अपना बेदर-ओ-दर ही तो है।।
इस पे इतराना कहाँ की अक्लमंदी है कहो
मानता एक दिन सभी से घर छुड़ाकर ही तो है।।

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