कितनी मशक्कतें रहीं कितने भरम रहे।
हर रोज ज़िन्दगी से उलझते ही हम रहे।।

हर सांस उनके नाम पे आई गयी मगर
उनके ख़्याल में जहाँ के जीरो-बम  रहे।।

जब भी वफ़ा की बात चली वो सम्हल गया
वो चाहता  था वो ही वफ़ा का सनम रहे।।

तू चाहता है हमको ज़माने के गम मिले
हम चाहते हैं एक तुम्हारा ही गम रहे।।

अब तुम भी छोड़ दो ये अदाएं ये हरकतें
वो उम्र न रही न वो दर्दो-अलम रहे।।

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