चलो! तुमकोे  ख्याल तो आया
देर से ही सही  सुबह तो हुयी।
तुम्हारे दिल के  एक कोने में
मेरी खातिर  तनिक जगह तो हुयी।।
कोई उम्मीद नही थी  कोई तमन्ना भी
जगा दिया मुझे  हरकत की इक तरह तो हुयी
सफर कटेगा तेरे गेसुओं के साये में
कोई वजह न थी जीने की  इक वजह तो हुयी।।
ये इश्क ही है कोई मज़हबी रिवाज़ नहीं
कोई तहज़ीब नहीं  रस्मो-रवायात नहीं
फिर भी चलना है तो  चलते ही चले जाना है
हमने चाहा है तुम्हे  तुमने हमें माना है
आरजू पूरी हुयी है  कि अधूरी है अभी
कौन से काम मुहब्बत में  जरूरी हैं अभी
हाँ मगर एक तमन्ना है  तमन्ना न रहे
तेरी बाँहों के सिवा और  गुजरना न रहे
वस्ल की रात रहे  रात मुकम्मल न रहे
कोई हसरत ना रहे  कोई भी हासिल न रहे
रास्ते ख़त्म भी हो जाएँ तो  मंजिल न रहे

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