हम कहाँ ऐसे खुशनसीबों में।
जिनको गिनता है तू करीबों में।।
 जो रक़ाबत हमारी करते हैं
हैफ वो हैं मेरे हबीबों में।।
तेरी ख़ातिर महल बना देते
हम न होते अगर गरीबों में।।
आज के दौर में वफ़ा वाले
गिने जाते हैं कुछ अजीबो में।।
वक्त रहते सम्हल गए वरना
हम भी दिखते तुम्हे सलीबों में ।।

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