तुम्हारी याद तो आई मगर ज़्यादा नहीं आई।
हमारी ज़िन्दगी में उलझने उससे भी ज़्यादा हैं।
थपेड़े वक्त के कब सोचने का वक्त देते हैं
तेरी यादो की कश्ती को निगलने पर आमादा हैं।।
तेरी यादो के साये में तड़पना चाहता तो हूँ
मगर दुनियां की जिम्मेदारियों ने थाम रखा है।
अगर मरना भी चाहूँ तो मेरा मरना भी मुश्किल है
न जाने कितनी उम्मीदों को मेरे नाम रखा है।।
न मैं कोई मसीहा हूँ ,न तो गुन हैं करिश्माई
न जाने किसने कर डाले मेरे जज्बे मसीहाई।
हज़ारों सूरतें हसरत भरी आँखों से तकती है
उन आँखों की चमक देखूं या देखूं तेरी रानाई।।
तुम्हारी याद तो आई मगर इतनी नही आई।।...
बड़े घर में सब बड़े ही लोग हैं कैसे कहें।
अकड़ना भी एक किसम का रोग है कैसे कहे।।
योग से ज्यादा समर्पण की यहाँ दरकार है
आजकल जो चल रहा वह भोग हैं कैसे कहें।।
चलो फिर आसमां छूने की कोशिश तो करें।
सितारे तोड़ कर लाने की ख्वाहिश तो करें।।
थमेगी और मिटेगी भी अंधेरों की शहंशाही
इक छोटी सी चिनगारी ही जुम्बिश तो करे।।
हमारी ज़िन्दगी में उलझने उससे भी ज़्यादा हैं।
थपेड़े वक्त के कब सोचने का वक्त देते हैं
तेरी यादो की कश्ती को निगलने पर आमादा हैं।।
तेरी यादो के साये में तड़पना चाहता तो हूँ
मगर दुनियां की जिम्मेदारियों ने थाम रखा है।
अगर मरना भी चाहूँ तो मेरा मरना भी मुश्किल है
न जाने कितनी उम्मीदों को मेरे नाम रखा है।।
न मैं कोई मसीहा हूँ ,न तो गुन हैं करिश्माई
न जाने किसने कर डाले मेरे जज्बे मसीहाई।
हज़ारों सूरतें हसरत भरी आँखों से तकती है
उन आँखों की चमक देखूं या देखूं तेरी रानाई।।
तुम्हारी याद तो आई मगर इतनी नही आई।।...
बड़े घर में सब बड़े ही लोग हैं कैसे कहें।
अकड़ना भी एक किसम का रोग है कैसे कहे।।
योग से ज्यादा समर्पण की यहाँ दरकार है
आजकल जो चल रहा वह भोग हैं कैसे कहें।।
चलो फिर आसमां छूने की कोशिश तो करें।
सितारे तोड़ कर लाने की ख्वाहिश तो करें।।
थमेगी और मिटेगी भी अंधेरों की शहंशाही
इक छोटी सी चिनगारी ही जुम्बिश तो करे।।
Comments
Post a Comment