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Showing posts from June, 2016
रात सोये सुबह उट्ठे क्या लगी है। उठ के दिन भर भागना भी ज़िंदगी है।। और चहिये और चहिये और चहिये आदमी तेरी गजब की तिश्नगी है।।
हम को चाँद सितारों वाली बातें भाती हैं। जादू बौने परियों वाली बातें  भाती हैं।। तुम को पिज्जा बर्गर बियर अच्छे लगते है हम को कुल्फी कुलचों वाली बातें भाती हैं।। वो तो धोखे में आकर हमने गलती कर दी वरना किसको जुमलों वाली बातें भाती हैं।। तुम्हे मुबारक टाई टमटम पब औ क्लब कल्चर हमको धोती गमछों वाली बातें भाती हैं।।  उनको टाटा अम्बानी के मन की करनी है हमको आम गरीबों वाली बातें भाती हैं।। देश से धोखा करने वाले मेरे दुश्मन हैं हमको सिर्फ शहीदों वाली बाते भाती हैं।।
आज नहीं तो कल सुधरेगा। निश्चित कमअक्कल सुधरेगा।। बेमौसम ही बरस गया है जाने कब बादल सुधरेगा।। शहर जंगलों से बदतर है कहते हैं जंगल सुधरेगा।। कर ले मात पिता की सेवा इससे तेरा कल सुधरेगा।। परमारथ में ध्यान लगा ले इससे मन चंचल सुधरेगा। जब सब डाकू बन जायेंगे तब जाकर चम्बल सुधरेगा।। हम सुधरेंगे जग सुधरेगा तब अंचल अंचल सुधरेगा।।
आज नहीं तो कल सुधरेगा। निश्चित कमअक्कल सुधरेगा।। बेमौसम ही बरस गया है जाने कब बादल सुधरेगा।। शहर जंगलों से बदतर है कहते हैं जंगल सुधरेगा।। कर ले मात पिता की सेवा इससे तेरा कल सुधरेगा।। परमारथ में ध्यान लगा ले इससे मन चंचल सुधरेगा। जब सब डाकू बन जायेंगे तब जाकर चम्बल सुधरेगा।। हम सुधरेंगे जग सुधरेगा तब अंचल अंचल सुधरेगा।।
कभी कभी सन्डे जब सन्डे जैसा नहीं लगे। सब कुछ अपना होकर भी कुछ अपना नहीं लगे।। कुछ रोचक कुछ तो मनमोहक कुछ प्रत्यक्ष दिखे सब कुछ नीरस सभी निरर्थक सपना नहीं लगे।।
तुम्हारी ज़िन्दगी है खूबसूरत। तुम्हे हो अब मेरी क्यूँकर ज़रूरत।। मैं बोलूं या न बोलूं क्या गरज है तुम्हे तो चाहिए माटी की मूरत।। मुहब्बत में तुम्हारी बेरुखी से न जाने टल गए कितने महूरत।। अगर इस पर भी हम तुम मिल गए तो इसे कहना विधाता की कुदूरत।।
अगर कुछ दूर तक तुम साथ चलते। तो हम  हाथों में डाले हाथ चलते ।। चलो अच्छा हुआ जो मुड़ गए तुम ये मुश्किल था कि तुम दिन रात चलते।। मुझे नाजो -हया से देख लेते यकीनन हम लिए बारात चलते।। तुम्हारे होठ भी तो थरथराते अगरचे वस्ल के हालात चलते।। हमारे साथ तुम ना खेल पाते तुम्हारी शह हमारे मात चलते।। तुम्हे कोई कमी रहने न देते लिए हम प्यार की सौगात चलते।। कोई कितना हमे रुसवा करेगा ज़ुबाने थक गयी हैं बात चलते ।।
इस बार होली हम  शहर में मनाएंगे गांव में धरा क्या है गांव नहीं जायेंगे।। गाड़ियों में भीड़ है बढ़ा है किराया भी वैसे ही गांव हमें रास कहाँ आया भी अपनापन रहा नहीं किसके लिए जायेंगे।। इस बार होली हम शहर में मनाएंगे।। गांवों में नात हित पट्टीदार आएंगे सबके लिए कहा से इतना जुटाएंगे शहर में हम तीनचार ही  मनाएंगे।। इस बार होली हम शहर में मनाएंगे।। गुझिया से मेवे से शूगर ही बढ़ता है तेल चिप्स पापड़ से मोटापा बढ़ता है शुगर फ्री गुझिया बाज़ार से ले आएंगे।।  इस बार होली हम शहर में मनायेंगे।।
जब कलम थकने लगे तब क्या लिखें। सच न लिख पाएं तो कुछ भी ना लिखें।। उनके कहने से लिखा तो क्या लिखा हमने जो देखा सुना वैसा लिखा अब नहीं कुछ भी दिखा तो क्या लिखें।। लेखनी को राज्य आश्रय किसलिए सत्य लिखने में कोई भय किसलिए डर के लिखना है तो बेशक  ना लिखें।
वेदना क्या थी हृदय से बोझ कम करते रहे। आँख पथराने न पाये रो के नम करते रहे।।... दूसरों को क्या लगा हमने कभी सोचा नहीं दूसरो को क्या बताते तुम ने जब पूछा नहीं और राहत के लिए खुद पे सितम करते रहे।। वेदना क्या थी हृदय से बोझ कम करते रहे ।... तुम गए मर्जी तुम्हारी हर कोई आज़ाद था हम लुटे नियति हमारी व्यर्थ का अवसाद था लौट कर तुम आओगे हाँ ये वहम करते रहे।। वेदना क्या थी ह्रदय से बोझ कम करते रहे ।.... प्रेम क्या है मूढ़ता है  बचपना है वेदना प्रेम क्या है मन कुसुम को कंटकों से भेदना और ऐसी मूढ़तायें  हम स्वयम् करते रहे।। वेदना क्या थी हृदय से बोझ कम करते रहे।....
ज़िन्दगी क्या है किराये का कोई घर ही तो है। और मकाँ-मालिक भी अपना बेदर-ओ-दर ही तो है।। इस पे इतराना कहाँ की अक्लमंदी है कहो मानता एक दिन सभी से घर छुड़ाकर ही तो है।।
आप सभी मित्रों को होली की हार्दिक शुभकामनायें!!!     तुम साथ हो तो तीज हैं त्यौहार है सभी।        वरना  हमारे  वास्ते  बेकार है सभी।।          होली में तुम हो साथ तो सब रंग साथ हैं             तुम जो करोगे आज वो स्वीकार है सभी।। होली  असल में नेताओं का त्यौहार है। नेता के पास रंग मिलते हज़ार हैं। रंग इतने एक साथ नेता बदलते हैं गिरगिट भी नेता के आगे शर्मशार है।।
मेरी हर इल्तिज़ा को टाल गया। काम अपना मगर निकाल गया।। उससे कोई जबाब क्या मिलता पूछ कर मुझसे सौ सवाल गया।। इसमें कोई ख़ुशी की बात नहीं उम्र का और एक साल गया।। खिदमतें वालिदैन की करना जानें कितनी बलायें टाल गया।। लड़खड़ाये थे कुछ कदम लेकिन एक ठोकर हमें सम्हाल गया।।
जीवन तरु मुरझाने मत दो कितनी भी आएं बाधायें आंधी हों या तेज हवाएँ आशा दीप बुझाने मत दो। प्रभु ने अवसर हमे दिया है जी भर भर कर हमे दिया है क्यों कृतज्ञ हम रहें किसी के खुद को क
सोचता हूँ तुझे भुला दूँ मैं रोज ये बात भूल जाता है।। याद करता हूँ मैं तुझे जब भी क्या है दिन रात भूल जाता हूँ।। तुझसे इक रोज तो ये पूछूँगा क्यों सवालात भूल जाता हूँ।। तुझसे मिलकर मैं खुश नहीं होता ये शिकायात भूल जाता हूँ।। Sanjay Gupta भाई!समाअत फरमायें!!!!
होली मानो सहज प्रेम का कोई किस्सा है। इन गालो की लाली में मेरा भी हिस्सा है।। जिसको भी ये सौभाग्य मिला सौ बार बधाई है माना वो मैं  नही किन्तु मेरे ही जैसा है।।
उम्र का बढ़ना सयानापन नहींउम्र का बढ़ना सयानापन नहीं सच है सठियाना सयानापन नहीं।। बात चाहे कम करो यह ठीक है पर मुकरजाना सयानापन नहीं।। ईद की बेजा बधाई मिल गयी छत पे यूँ आना सयानापन नहीं।। दलबदल परिपक्वता की बात है निष्ठ हो जाना सयानापन नहीं।। कोई घोटाला करो स्वीकार है पर डकार आना सयानापन नहीं।। रोक लो अन्याय अब भी वक्त है सच को झुठलाना सयानापन नही।। छात्र युवक कल का हिंदुस्तान है इन को लठियाना सयानापन नहीं।।सच है सठियाना सयानापन नहीं।। बात चाहे कम करो यह ठीक है पर मुकरजाना सयानापन नहीं।। ईद की बेजा बधाई मिल गयी छत पे यूँ आना सयानापन नहीं।। दलबदल परिपक्वता की बात है निष्ठ हो जाना सयानापन नहीं।। कोई घोटाला करो स्वीकार है पर डकार आना सयानापन नहीं।। रोक लो अन्याय अब भी वक्त है सच को झुठलाना सयानापन नही।। छात्र युवक कल का हिंदुस्तान है इन को लठियाना सयानापन नहीं।।
खूब उम्मीदें पाले थे। शायद हम मतवाले थे।। जिन पर ठोकर ठेस लगी रस्ते देखे- भाले  थे ।। भाई तक मुंह मोड़ गए वो तो फिर भी साले थे।। जीवन डगमग बीत गया कितने  ऊँचे खाले थे।। ईसा जैसे सूली पर हम भी चढ़ने वाले थे।। कौन गवाही देता जब सबके मुंह पर ताले थे।। लड़की कैसे न डरती सब तो मजहब वाले थे।। मैं ही अँधा था वरना चारो ऒर उजाले थे।। मेरी राहें रोशन हों माँ ने दीये  बाले थे।। तुमने गम की नेमत दी हम तो निपट निठाले थे।। वहां आदमी एक न था मस्जिद और शिवाले थे।।
तुमारी झील सी आँखे हमारा दिल समंदर है। इन्ही में डूब जाने का तुम्हे डर है हमे डर है।। हमें दिल देके तुमने कोई नादानी नहीं की है कहीं यह टूट न जाए हमारा ध्यान इसपर है।। ये कैसी बात करती हो न जाने किस से डरती हो अगर तुम साथ हो अपने तो समझो रब की मेहर है।। तेरी जुल्फों के साये में बिता दें जिंदगी लेकिन मुहब्बत के अलावा भी हजारो काम सर पर है।।
चलो! तुमकोे  ख्याल तो आया देर से ही सही  सुबह तो हुयी। तुम्हारे दिल के  एक कोने में मेरी खातिर  तनिक जगह तो हुयी।। कोई उम्मीद नही थी  कोई तमन्ना भी जगा दिया मुझे  हरकत की इक तरह तो हुयी सफर कटेगा तेरे गेसुओं के साये में कोई वजह न थी जीने की  इक वजह तो हुयी।। ये इश्क ही है कोई मज़हबी रिवाज़ नहीं कोई तहज़ीब नहीं  रस्मो-रवायात नहीं फिर भी चलना है तो  चलते ही चले जाना है हमने चाहा है तुम्हे  तुमने हमें माना है आरजू पूरी हुयी है  कि अधूरी है अभी कौन से काम मुहब्बत में  जरूरी हैं अभी हाँ मगर एक तमन्ना है  तमन्ना न रहे तेरी बाँहों के सिवा और  गुजरना न रहे वस्ल की रात रहे  रात मुकम्मल न रहे कोई हसरत ना रहे  कोई भी हासिल न रहे रास्ते ख़त्म भी हो जाएँ तो  मंजिल न रहे
मानी या बेमानी होना है तो कवि की बानी होना मेरा हाल न पूछे कोई भाता नहीं कहानी होना मुझे गुलाम बनाया किसने उनका दिल की रानी होना मेरा उनका टकरा जाना उनका पानी पानी होना कल कोई कैसे मानेगा कोई एक निशानी हो ना नया किसे स्वीकार नही है है तो बात पुरानी होना दिल से दिल की बात करो कुछ सुनने में आसानी हो ना एक बार तो चल जाता है बार बार नादानी हो ना
हम तुम्हारे ख़्वाब लेकर जी रहे हैं। और हैरां हैं कि क्यूँकर जी रहे हैं।। बस गए हैं बस्तियों में जानवर इसलिए जंगल में आकर जी रहे हैं।। गांव की आबो- हवा में थी घुटन चिमनियों में साँस पाकर जी रहे हैं।। रूह तब तक थी जहाँ तक था ज़मीर अब फ़क़त जिस्मों के पैकर जी रहे हैं।। कौन कहता है बड़ा हैं ये शहर लोग दड़बों में सिमटकर जी रहे हैं।। अब हुकूमत पत्थरों के साथ हैं आईने फितरत बदलकर जी रहे हैं।। मेरे अंदर  एक शायर था कभी अपने शायर को दफन कर जी रहे हैं।
बिलकुल अनजाने लगते हो । तुम भी कितना बदल गए हो।। कहाँ गया बेबाक ठहाका अब धीरे से हंस देते हो।। तुममे तुमको कैसे ढूंढ़े कितना गलत पता देते हो।। आज मिटा तो भेद दिलों से शिकवे गिले लिए बैठे हो।। प्रेम गली में हम रहते हैं तुम भी कुछ दिन वहां रहे हो।। हम जो भी हैं बतलाते हैं तुम भी बोलो तुम कैसे हो।।
तेरा ख़याल नज्म  है  तुम्हारी याद ग़ज़ल तेरा ख़याल नज्म  है  तुम्हारी याद ग़ज़ल तेरा ख़याल नहीं है तो लाकलाम हूँ मैं।। तेरी सूरत तेरी आँखें तेरी झुकी नजरें बगैर इनके अगर हूँ तो ला मकाम हूँ मैं।। ये सुर्ख लव तेरे कलियाँ हैं याकि पैमाने इन्ही लबों की तरन्नुम का इंतज़ाम हूँ मैं।। तुम्हारा नाम जुड़ा है मेरी मुहब्बत से तुम्हारे हुश्न की शोहरत तुम्हारा नाम हूँ मैं।।
अगर बिकता तो मैं क्या  काम करता। बस अपनी नस्ल को नीलाम करता।। शिकायत बेवज़ह अजदाद को थी कहाँ था नाम जो बदनाम  करता।। मशक्कत से ज़ईफ़ी जल्द आई पता होता तो मैं आराम करता।। सियासत एक अच्छा कैरियर था अगर करता तो मैं भी नाम करता।। अगर शमशीर से दिल जीत सकता तो मजनूँ  खूब कत्लेआम करता।। मैं था  हालात से  मजबूर वरना गली में तेरी सुबहो-शाम करता।। तेरी आँखों की मस्ती काम आती मुझे हक था मैं शौक़-ए-ज़ाम करता।।
जाने किस बोझ से दबे चेहरे। कब खिलेंगे बुझे बुझे चेहरे।। नदी सूखी है ताल सूखे हैं रह गए हैं तो सूखते चेहरे।। आईने कैसे साफ़ दिखलाते गर्द से धूल से सने चेहरे।। वो मेरी अहमियत समझते हैं कह रहे हैं बने ठने चेहरे।। जान जाती है फिर बिकेगी वो जब भी दिखते हैं कुछ नए चेहरे।।
जो गांधी को गरियाता है। वो ही नेता बन जाता है।। अब पूरे किसको करने हैं वो वादा तो कर जाता है।। अपनी माता का ध्यान नहीं जय माता दी चिल्लाता है।। जनता की माँगें बारिश है उसका चुनाव चिन्ह छाता है।। जो तड़ीपार अपराधी था अब अपना भाग्य विधाता है।। जनपथ पर पड़ी सिसकती है हाँ वो ही भारत माता है।।

दो कविताएँ।

ये कहानी फिर अधूरी रह गयी। अनगिनत बातें जरूरी रह गयी।। हुश्न क्या था इश्क़ का कोई लिबास झुर्रियों में खानापूरी रह गयी।। मैं किसी से चर्चा में जाने क्या क्या कह गया।खैर!!! मैं इक मूरख बंदा हूँ। कवि लेखक हूँ वक्ता हूँ।। एक बड़ी बीमारी है सबके दुःख में रोता हूँ।। सुख में हो न हो सबके दुःख में शामिल रहता हूँ।। सारी दुनिया सोतो है मैं तब भी जागा करता हूँ।।  कभी ध्यान में डूबा तो सब कहते हैं गाता हूँ।। वैसे अपनी रोजी है मैं लोहे को गढ़ता हूँ ।।
लेना- देना तो होता है प्यार मगर व्यापार नहीं है। अग्नि परीक्षा ले लो लेकिन अविश्वास स्वीकार नहीं है।। मेरा हृदय तुम्हारा घर है औरों का आगार नहीं है।। कैसे तुमने मान लिया यह हमको तुमसे प्यार नहीं है।।
सच का इज़हार कोई क्यों न करे। मान मनुहार कोई क्यों न  करे।। आप में बात ही कुछ ऐसी है आपसे प्यार कोई क्यों न करे।। प्यार चोरी नहीं गुनाह नहीं सर-ए-बाज़ार कोई क्यों न करे।। इतनी कातिल हैं आप की नजरें फिर गिरफ्तार कोई क्यों न करे।। आप मेरे हैं आप के हम है ये भी स्वीकार कोई क्यों न करे।।
चलते फिरते गिरते पड़ते। तय होते जीवन के रस्ते।। हमसे तुमसे इनसे उनसे वक्त नहीं रखता है रिश्ते।। आगे- पीछे    ऊपर- नीचे जीवन क्या है कुछ समझौते।। रोना हंसना जीना मरना रब ही जाने रब की बातें।। जैसी करनी वैसी भरनी फिर भी अपनी करते जाते।। जैसे तैसे ऐसे वैसे सब हैं अपना जीवन जीते।। आजू बाजू दायें बाएं भीड़ बहुत थी कैसे बचते।।
कुछ पन्ने सहेज कर रखना कुछ पन्नों को बिसरा देना। कुछ पन्नों की नाव बनाकर बारिश में बच्चा बन जाना।। कुछ पन्नों के बीच दबाना स्मृतियों के पुष्प गुलाबी। कुछ पन्नों में तुम सहेजना होठ रसीले नैन शराबी।। पीछे वाले पन्नों में तुम लिख रखना दो चार शायरी। स्मृतियों को जीवन देगी आजीवन इक यही डायरी।।
तुम्हारी याद तो आई  मगर ज़्यादा नहीं आई। हमारी ज़िन्दगी में उलझने उससे भी ज़्यादा हैं। थपेड़े वक्त के कब सोचने का वक्त देते हैं तेरी यादो की कश्ती को निगलने पर आमादा हैं।। तेरी यादो के साये में तड़पना चाहता तो हूँ मगर दुनियां की जिम्मेदारियों ने थाम रखा है। अगर मरना भी चाहूँ तो मेरा मरना भी मुश्किल है न जाने  कितनी उम्मीदों को मेरे नाम रखा है।। न मैं कोई मसीहा हूँ ,न तो गुन हैं करिश्माई न जाने किसने कर डाले मेरे जज्बे मसीहाई। हज़ारों सूरतें हसरत भरी आँखों से तकती है उन आँखों की चमक देखूं या देखूं तेरी रानाई।। तुम्हारी याद तो आई मगर इतनी नही आई।।... बड़े घर में सब बड़े ही लोग हैं कैसे कहें। अकड़ना भी एक किसम का रोग है कैसे कहे।। योग से ज्यादा समर्पण की यहाँ दरकार है आजकल जो चल रहा वह भोग हैं कैसे कहें।। चलो फिर आसमां छूने की कोशिश तो करें। सितारे तोड़ कर लाने की ख्वाहिश तो करें।। थमेगी और मिटेगी भी अंधेरों की शहंशाही इक छोटी सी चिनगारी ही जुम्बिश तो करे।।
कहाँ मैं पड़ गया छन्दों पदों में।  भट गायन में दरबारी हदों में।। मुझे छोटा किया है शीर्षकों ने बिठाकर के मुझे ऊँचे कदों में।। शरीफों वाइजों में लुट ही जाती बची है उसकीअस्मत शोहदों में।। ये छोटे हैं मगर दिल से बड़े हैं अधिकतर तंगदिल हैं ओहदों में।। मुहब्बत मौसिकी ,हो शायरी हो ये कब बांधे बंधी हैं सरहदों में।। फलक के पार जैसे जा रहा हूँ कोई  जन्नत हैं नादों-अनहदों में।।
कितनी मशक्कतें रहीं कितने भरम रहे। हर रोज ज़िन्दगी से उलझते ही हम रहे।। हर सांस उनके नाम पे आई गयी मगर उनके ख़्याल में जहाँ के जीरो-बम  रहे।। जब भी वफ़ा की बात चली वो सम्हल गया वो चाहता  था वो ही वफ़ा का सनम रहे।। तू चाहता है हमको ज़माने के गम मिले हम चाहते हैं एक तुम्हारा ही गम रहे।। अब तुम भी छोड़ दो ये अदाएं ये हरकतें वो उम्र न रही न वो दर्दो-अलम रहे।।
न कुछ पूछा गया मुझसे न कुछ बताया गया। तो किस गुनाह पे मुजरिम मुझे ठहराया गया।। मुझे सजा मिली हैरत नही मलाल नहीं मेरा कातिल मेरा मुंसिफ़ अगर बनाया गया।। मेरा वकील भला था मगर ग़रीब भी था मुझे पता है उसे किस तरह पटाया गया।। हमारी कौम ने अब देवता क़ुबूल किया पता चला मुझे जब दार पे चढ़ाया गया।। मुन्सिफ़-न्यायाधीश ^दार-सूली
हाँ!  मशमूरे-खता रहे हैं। हम तो खुद ही बता रहे हैं।। उनकी दाल नही गल पायी इसीलिए बौखला रहे हैं।। वो पत्थर के रहेंगे हमको माटी में जो मिला रहे हैं। गीता जैसा ज्ञान सभी को गोविन्द जी खुद सुना रहे हैं।। मेरे जैसे अज्ञानी को ज्ञानी मिलकर सता रहे हैं। मूढ़मती है हम जो सबको दिल की बातें बता रहे हैं।। (एक निम्नस्तरीय बहस से साभार )
हमको कब बेखुदी में जोश आया। जोश आया तो समझो होश आया। लोग पीते हैं होश खोने को हमको पीने के बाद होश आया।। मैं उसे देखते ही यु  झूमा कह उठे सब शराब-नोश आया।। शोर कहना भी कममूनासिब है दिल से तूफान सा ख़रोश आया।। वक्त को कौन जान पाया वो जब भी आया नकाबपोश आया ।।
महफ़िल से उठ लिये तेरी महफ़िल बनी रहे। शायद किसी के प्यार के काबिल बनी रहे।। हासिल न हो सकी हमें रानाईयाँ तेरी तेरे लिए दुआ है तू हासिल बनी रहे।। आएंगे-जायेंगे  मेरे जैसे यहाँ तमाम रस्ते बने रहें अगर मंज़िल बनी रहे।। महफ़िल से उठ गया तो क्या तन्हा नहीं हूँ मैं ये और बात है कि तू गाफ़िल बनी रहे।।
गाँव के बहुत पेड़ अब नहीं है मुहब्बत की जड़ें भी मर चुकी हैं यहाँ था गांव का बरगद पुराना तरक्की की हवा से गिर गया वो विधायक जी ने कब्जा कर लिया है हाँ उनके भी अब कुछ दिन बचे हैं वहां बैठक है बड़के चौधरी की बुलेरो है ,कई डम्फर खड़े हैं वो बड़का घर तो कब का गिर चुका है पलानी छा के सारे रह रहे हैं अब साहू जी प्रधान हो गए हैं शंकर फिर खेत रख दिया है मनरेगा में काम मिल गया है चार आना परधान जी लेते हैं इमनदारी से पैसा दे देते हैं अरे अब गांव बहुत बढ़ गया है दारू की दुकान भी  खुल गयी है।।
माँ तुझ पर क्या लिख सकता हूँ। मैं तो खुद तेरी रचना हूँ।। तूने खुद को घटा दिया है तब जाकर मैं बड़ा हुआ हूँ।। आज थाम लो मेरी ऊँगली माँ मैं सचमुच भटक गया हूँ।। मुझसे गलती कभी न होगी आखिर तेरा ही जाया हूँ।। तेरी सेवा कर न सका मैं यही सोच रोया करता हूँ।। तेरी दुआ बचा लेती है जब मैं मुश्किल में होता हूँ।। कैसे कर्ज चुकाऊं तेरे क्या मैं कर्ज चुका सकता हूँ।।
जाने कितनों से अदावत कर लीं। एक तुमसे जो मुहब्बत कर ली।। एक जरा शौक़ -ओ-तमन्ना जागी और नासाज़ तबीयत कर ली ।।
दिन गया रात गयी। हर गयी  बात गयी।। हम सियासी जो हुए सारी औकात गयी।। चन्द रूपये भी गए और मुलाकात गयी।। उसकी अस्मत भी लुटी और हवालात गयी।। खेत सूखे ही रहे पूरी बरसात गयी।। धन यहीं छूट गया नेकियाँ साथ गयी।।
सुबह ड्यूटी जाता हूँ शाम को वापस आता हूँ शाम से रात तक ढेर सारे काम साग सब्जी लाना बीबी बच्चों को घुमाना टहलाना देर रात गए सोना फिर सुबह वही जद्दोजहद इस बीच कविता कहाँ गयी खोज रहा हूँ!!!
यूँ सरे रात जागता क्या है। मौत का इससे वास्ता क्या है।। नींद आखों से भाग जाती है नींद आने का रास्ता क्या है।। पल में घटता है पल में बढ़ता है कद को साये से नापता क्या है।। एक छत के तले हैं हम दोनों फिर दिलों का ये फासला क्या है।। मौत से मुस्कुरा के मिलता हूँ फिर ये तकलीफ ये बला क्या है।। तू अग़र बेवफ़ा समझता है तुझे मालूम है वफ़ा क्या है।। उम्र के साथ सीख जायेगा क्या बुरा है यहां भला क्या है।।
हम कहाँ ऐसे खुशनसीबों में। जिनको गिनता है तू करीबों में।।  जो रक़ाबत हमारी करते हैं हैफ वो हैं मेरे हबीबों में।। तेरी ख़ातिर महल बना देते हम न होते अगर गरीबों में।। आज के दौर में वफ़ा वाले गिने जाते हैं कुछ अजीबो में।। वक्त रहते सम्हल गए वरना हम भी दिखते तुम्हे सलीबों में ।।
#मित्र1 तुम भी यार गज़ब करते हों। कब की बातें अब करते हो।। प्यार में घाटा और मुनाफा क्यों बातें बेढब करते हो।। बातों में इक रूखापन है आँखों से डबडब करते हो।। दिल वालों से सौदेबाजी काहे को ये सब करते हो।। तुम समाज से कब ऊपर हो बातें बेमतलब करते हो।। सबके दिल में बसे हुए हो कैसे ये करतब करते हो।। सारे तुमको जान गए हैं तुम ऐसा जब तब करते हो।
मेरी दुनिया हो मत पूछो किस दुनिया से आई हूँ मैं ।। उस दुनिया में सब कहते थे  ये घर नहीं परायी हूँ मैं ।। रौशनी कंत के घर की हूँ या पति की परछाई हूँ मैं।। मैं क्या  मेरी पहचान है क्या ये समझ नही पाई हूँ मैं।।
#मित्र2 कितनी बात बदलते हो तुम । कितनी बार बदलते हो तुम।। शतरंजी  घोड़े  से ज्यादा आड़ा तिरछा चलते हो तुम।। मौसम की कुछ मर्यादा है पर वेवक्त मचलते हो तुम।। संभाषण का आश्रय लेकर कितना जहर उगलते हो तुम।। तनिक डकार नही लेते हो कैसे बजट निगलते हो तुम।। गिरगिट भी आश्चर्यचकित है इतने रंग बदलते हो तुम।। घर बाहर बाजार कचहरी चौराहों पर मिलते हो तुम।। सुनकर ये हैरान बहुत हूँ आस्तीन में पलते हो तुम।। छले गए तुम साफ झूठ है खुद छलना को छलते हो तुम।। जग की रपटीली राहों पर कैसे यार सम्हलते हो तुम।। #मित्र
इश्क में और हमने जाना क्या। इश्क़ हो जाए तो ज़माना क्या।। जहाँ परिंदे भी पर न मार सके उस जगह आशियाँ बनाना क्या।। दोस्त ही आजमाए जाते हैं किसी दुश्मन को आज़माना क्या।। किसी पत्थर के दिल नहीं होता एक पत्थर से दिल लगाना क्या।। दिल के बदले में दिल ही मिलता है इसमें खोना नहीं तो पाना क्या।। इश्क़ को इससे कोई फ़र्क नहीं ताज  क्या है गरीबखाना क्या।। हमने तो हाल दिल का जान लिया आज हमसे नज़र चुराना क्या।। चार दिन की है जिंदगानी भी और इसमें नया पुराना क्या।। क्या लिखें कैसे लिखें किसको लिखें। कोई पढ़ता ही नही किसको लिखें।। अब शिकायत तो किसी से क्या करें फरियाद ही सुन ले कोई जिसको लिखें।।
हमारे पास कोई दौलतें न थी तुम थे। बाप दादों की विरासतें न थी तुम थे। तुम न होते तो हम खुदा से मांगते बेशक तुम्हारे बाद कोई हसरतें न थी तुम थे।। तुमसे पहले हमें बलाओं ने घेर रखा था तुम्हारे बाद कहीं आफतें न थी तुम थे।। आज दिन भर उमस भरी गर्मी काश की जेब भी गरम रहती।। कल की आंधी ने थोड़ी राहत दी थोड़ी राहत भी कब तलक रहती।।
लिखते हैं अब नई कहानी। कितना ढोयें बात पुरानी।। प्यार किया पागल कहलाये आवारा बादल कहलाये जाने कितने दाग लगाये चूनर लगने लगी पुरानी।।लिखते हैं अब... उनकी खुशियाँ उनकी बातें अपने हिस्से केवल मातें एक तरफा अनुबंध निभाते भूल गए हम अपनी बानी।।लिखते हैं अब.... ऐसे प्यार निभाया हमने निज सर्वस्व लुटाया हमने यूँ अस्तित्व मिटाया हमने ज्यूँ सागर में नदी समानी।।लिखते हैं अब.... प्यार में किंचित सुख होता है प्रति अपेक्षा दुःख होता है जब चिंतन अभिमुख होता है तब गौतम होता है ज्ञानी।।लिखते है अब...
बड़ी महफ़िल है लेकिन अज़नबी है। मेरे लायक यहाँ कुछ भी नही है।। सभी के पास ऊँचे ओहदे हैं हमारे पास खाली पोटली है।। इरादे   कायरों के   डोलते हैं हमारी नाव डगमग डोलती है।। हमारा दिल समन्दर की तरह है हमारी आरजू प्यासी नदी है।।
किसी को चाहतों ने मार डाला। किसी को नफ़रतों ने मार डाला।। मैं ज़िन्दा था दुवा से दुश्मनों की फ़ितरतन दोस्तों ने मार डाला।। अदाओं पर मैं जिसकी मर मिटा था उसी की हरकतों ने मार डाला।। मेरे साक़ी में गोया ज़िंदगी थी छुड़ाकर ज़ाहिदों ने मार डाला।। न था अलगाव कोई मैक़शों में ख़ुदा वालों ने मुझ को मार डाला। जो अनपढ़ थे मुहब्बत से भरे थे मुझे ज़्यादा पढ़ों ने मार डाला।।
हम अलग हैं वे अलग हैं सोच ये हावी रही। दूसरे  सारे ही ठग हैं, सोच ये हावी रही।। हमने अपने घर को अपने मुल्क को माना नही एक अमरीका स्वरग है सोच ये हावी रही।।
छोडो यार साहनी जी विद्वान मत बनो। अपनी चादर में रहो ढेर जिब्रान मत बनो।। रामकहानी लिख तुलसी ना बन जाओगे भक्ति भावना में बहि के रसखान मत बनो।। अंडा जैसे फूट पड़े , एक देश बन  गए पैजामा में रहो चीन जापान मत बनो।। हमे पता है गुड़ के बाप तुम्ही हो कोल्हू मजा ले रहे हो , इतने अनजान मत बनो।। पार नाव से हुए लौट विमान से आये उतराई तो दो ज्यादा भगवान मत बनो।। अबकी बार वोट को फिर से बेच न देना पहचानो जानो तब दो अनजान मत बनो।।
हर एक शख़्स में इंसान नहीं होता है। जो समझ ले वो परेशान नही होता है।। तुम उसे पूज के भगवान बना देते हो कोई पत्थर कभी भगवान नही होता है।। पशु व पक्षी भी समझते हैं मुहब्बत की जुबाँ कौन कहता है उन्हें ज्ञान नहीं होता है।। आज विज्ञान ने क्या ख़ाक तरक्की की है मौत का आज भी इमकान नही होता है।। ये सियासत है यहां और मिलेगा सबकुछ इनकी दुनिया में इक इमान नहीं होता है।। देश-दुनिया के मसाइल तो पता हैं इनको इनसे रत्ती भी समाधान नहीं होता है।।
मुझे लगता है कुछ दिन के लिए मैं मौन हो जाऊं। तुम्हारे स्नेह के ऋण के लिए मैं मौन हो जाऊं।। कभी ऐसा लगे कि प्यार में तकरार होनी है तो बेहतर है कि कुछ क्षण के लिए मैं मौन हो जाऊं।। कभी राजी कभी नाराजगी पूरब कभी पश्चिम चलो उत्तर न दक्षिण के लिए मैं मौन हो जाऊँ।। हमारे गीत गर तुमको किसी से कम समझ आएं तो कह देना कि किन किन के लिए मैं मौन हो जाऊं।। मेरा संगीत मेरी साधना गर तुम नही हो तो बताओ कौन है जिनके लिए मैं मौन हो जाऊं।।
मैं मौसम की बातें कहाँ तक चलाता। उसे प्यार करना न आया न आता।। न मिलना न खुलना न बिंदास होना मैं आखिर अलिफ़ बे कहाँ तक सिखाता।।

जन्मना मछुवा बड़ा अपराध है।

राम के हाथों उसे सद्गति मिली। ब्रम्ह हत्या किन्तु केवट को लगी।। क्या गरज थी पार करवाया उन्हें घने वन में छोड़ कर आया उन्हें तब वहां सीता पे संकट आ गया बली रावण उनको ही हर ले गया राम ने खोजा सिया को हर कहीं अंततः कपि को वो लंका में मिलीं वहां कपि को इक विभीषण भी मिला मृत्यु रावण की उसे ही थी पता राम को सब भेद उसने दे दिया राम ने रावण से बदला ले लिया राम के हाथों दशानन वध हुआ विद्वान ब्राम्हण इस तरह मारा गया किन्तु इस हत्या का दोषी कौन हो वन में आखिर किसने भेजा राम को कौन जो हर दुःख में उनके साथ था उनको बुलवा कर के सम्मानित करो बलि के बकरे की तरह टीका करो राजगद्दी के बगल आसन मिले श्रेय रावण वध का उनको दीजिये निषाद राजा गुह्य को बुलवाया राम ने अपने सदृश आसन दिया श्रेय लंका विजय का उनको दिया मत्स्य राजा ये समझ ही ना सके और ब्राम्हणों के शाप के भाजन बने ये सुअवसर अनवरत आते रहे और हरदम हम छले जाते रहे पाप का भागी सदा से व्याध है जन्मना मछुवा बड़ा अपराध है जन्मना मांझी बड़ा अपराध है।।......
रोज ढलेंगे रोज उगेंगे कभी अँधेरे कभी उजाले। अंधियारा हों उजियारा  हों कब रुकते हैं रुकने वाले।। हथियारों की होड़ लगी हो, भले सरों की भीड़ लगी हो लश्कर देख नहीं डरते हैं ,धर्म युद्ध के लड़ने वाले।। डरने वाले डरा करेंगे,  एक नहीं सौ बार मरेंगे किन्तु सदा जीवित रहते हैं, हंसते हँसते मरने वाले।।
मजनू राँझा की राहों पर। सब बर्बाद हुए चाहों पर।। फूलों में पलकर जा पहुंचे कैसे पथरीली राहों पर।। दरवेशों की अज़मत देखो भारी पड़ती है शाहों पर।। यार न माना मगर सुना है ख़ुदा पिघलता हैं आहों पर।। प्यार गुनाह नहीं होता तो इज्जत पाता चौराहों पर।। गोवा में जो खोज रहे हो टंगा हुआ है खजुराहो पर।। मेरी कविता तोड़ गयी दम उनकी सौतेली डाहों पर।।
वक्त कितना ठहर ठहर गुजरा। साथ तेरे जो मुख़्तसर गुजरा।। उसकी मंज़िल ख़ुदा न जान स्का जो मुहब्बत की रहगुजर गुजरा।। अब तो जन्नत में ही मिलूँ शायद मैकदे में जो आज कर गुज़रा।। तेरे दीदार की तड़प लेकर मर गया जो भी बेसबर गुजरा।। तेरी चाहत में सौ जनम कम थे  मेरे जैसा भी इक उमर गुज़रा।। वो मेरा आखिरी सफर होगा तेरे कूचे से मैं अगर गुजरा।। इश्क़ मेरा जुनूँ की हद मेरी तू गया और मैं इधर गुजरा।। और आजिज़ हुए सवालों से क्या कहाँ कौन कब किधर गुजरा।। रात को नींद दिन में चैन नही ऐसी हालत से उम्रभर गुजरा।।

जिंदगानी यूँ ख़तम करते नही

जिंदगानी यूँ खतम करते नहीं। हाँ कहानी यूँ खतम करते नहीं।। सल्तनत दिल की बढ़े चाहे घटे राजधानी यूँ खतम करते नहीं।। सूख जाए ना समन्दर ही कहीं  ये रवानी यूँ  खतम करते नही।।  कुछ अना से कुछ ख़ुदा से भी डरो हक़बयानी यूँ ख़तम करते नहीं।। शक सुब्ह नजदीकियों में उज़्र है शादमानी यूँ खतम करते नहीं।।