सिर्फ़ सच बोलने से डरता हूँ।।
ये करिश्मा मैं खूब करता हूँ। रोज जीता हूँ रोज मरता हूँ।। यूँ तो मुझको कोई भी खौफ नहीं सिर्फ़ सच बोलने से डरता हूँ।। मेरी पहचान ये नहीं फिर भी क्यों इसे ओढ़ता पहनता हूँ।। मेरा कातिल है कोई गैर नहीं खूबियां उसकी मैं समझता हूँ।। मेरी दुनिया मेरा दिमाग औ दिल और इसमें भी मैं भटकता हूँ।। मैं कहीं भी सहज नहीं होता मैं मुझे ही बहुत अखरता हूँ।। जागने पर उजाड़ सा क्यों हूँ रोज मैं नींद में सँवरता हूँ।। कोई मेरा पता बता दे मुझे मैं गली दर गली गुजरता हूँ।।