यूँ बिगाड़ी अपनी किस्मत हाय रे!!!!

यूँ बिगाड़ी अपनी किस्मत हाय रे!!!!
तोड़ डाली बंदिशे औ दायरे।।
मेरी खुशियाँ रास्ते में बँट गयी
उम्र फिर भी जैसे तैसे कट गयी
और बाक़ी भी यूँ ही कट जाए रे।
पास होकर भी कहाँ हम पास हैं
हर घडी पतझड़ कहाँ मधुमास है
और अब पतझर ही मन को भाए रे!
कब तलक झीनी चदरिया ओढ़ते
प्रेम की आदत कहाँ तक छोड़ते
तन तम्बूरा तार टूटे जाए रे।।
राह तकते नैन कोटर में बसे
देह लेकर अस्थियों में जा धंसे
निपट निष्ठुर किन्तु तुम ना आये रे।।
रात थक कर चांदनी में सो गयी
चांदनी भी भोर होते खो गयी
तुम कहाँ हो कोई तो बतलाए रे!!!

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