शायद उनका साथ दें परछाईयाँ ।

शायद उनका साथ दें परछाईयाँ ।
जी रहे जो ओढ़ कर तन्हाईयाँ।।
डालियों का झूमना मधुमास में
याद आती हैं तेरी अँगड़ाइयाँ।।
आदमी की जान सस्ती हो गयी
कौन कहता है कि हैं महंगाईयां।।
प्यार बिकता ही नहीं बाजार में
तुमको सौदे में मिली ऐय्यारियां ।।
ऊँचे महलों में मिले संदेह हैं
झोंपड़ी में है जो खातिरदारियाँ।।
बालपन के साथ वो दौलत गयी
बेवजह खुशियाँ मेरी किलकारियाँ।।
अब शहर के रास्तों में खो गयी
गांव तक जाती थीं जो पगडंडियाँ।।
अपने बच्चों को कहाँ दिखलाओगे
मेड़ मग महुवारियां अमराइयाँ।।
बाथ टब शावर में मिलने से रही
गांव के तालाब वाली मस्तियाँ।।
चार कंधे भी नही होते नसीब
चल पड़ीं आजकल वो लारियां।।

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