धर्म मठों से आगे बढ़कर
घर पहुंचा तो
कर्मकांड की मदिरा पीकर
गांवों में ,गांवों से बाहर
कस्बों तक ,कस्बों से बाहर
सड़कों पर फिर शहर शहर
फिर राजमार्ग से महानगर
फिर महानगर के संस्थानों में
शक्तियुक्त  या शस्त्र युक्त
पथ संचलन दिखाता
जन मानस में धर्म भीरुता
फ़ैलाने को उद्यत होकर
पहुंचेगा जब कालर कालर
तभी बढ़ेगा धर्म निरंतर
जब तुम होंगे भय से कातर
तब तक शायद  हो न कन्हैया
तब तक शायद हो न कन्हैया!!!!!

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