कुछ कुछ बहक गए थे कदम चार चल लिए।

कुछ कुछ बहक गए थे कदम चार चल लिए।
ठोकर लगी तो हमने इरादे बदल लिए।।
कुछ लोग चीखते रहे इन्साफ के लिए
बाकी तमाम लोग घरों को निकल लिए।।
सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता गया शहर
यूँ ही हजारों गांव शहर ने निगल लिए।।
किसका लिबास कैसा था वो क्या बताएगी
सब थे अमीर घर गए कपड़े बदल लिए।।
हम जूझते हैं खेत में बैल और हल लिए।
वो खुश है कागजों में हमारी फसल लिए।।
तुमने कहा था साथ निभाएंगे उम्र भर
फिर किस तरह जहां से अकेले टहल लिए।।
नेकी करो बदले में कुछ उम्मीद मत करो
जिसने लगाये पेड़ कहाँ उसने फल लिए।।
बेसुध कभी हुए भी तो बस नाम के लिए
इक पल को डगमगाए मगर खुद सम्हल लिए।।
धरती की कोख को किसी शिव की तलाश है
समंदर तड़प रहा है उदर में गरल लिए।।
मुहब्बत के जायरीन कहीं भी नही मिले
मुमताज क्या करेगी ताज का महल लिए।।

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