ये नामुराद ख्यालों में मर मिटे हम तुम।

ये नामुराद ख्यालों में मर मिटे हम तुम।
जबाब हो के सवालों में मर मिटे हम तुम।।
ये शौक था कि अंधेरों से लड़ के जीतेंगे
ये हैफ है कि उजालों में मर मिटे हम तुम।।
हमें गुमान बहुत था हमारी गैरत पर
तो कैसे फेके निवालों में मर मिटे हम तुम।।
पनाह हमसे समंदर भी मांगते थे कभी
और आज मौसमी नालों में मर मिटेे हम तुम।।
बड़े शरीर हैं ,शातिर हैं ,चालबाज भी हैं
ये कैसे चाहने वालों पे मर मिटे हम तुम।
निकाल ले गया आँखें दिखा के कुछ सपने
दलील सुन के दलालों पे मर मिटे हम तुम।।
हमारे सुखों की सीता को ले उड़ा रावण
जो स्वर्ण मृग की उछालो पे मर मिटे हमतुम।।

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