घर-गिरस्ती खेत तक गिरवी पड़ा है।

घर-गिरस्ती खेत तक गिरवी पड़ा है।
बात लेकिन कितनी लम्बी झाड़ता है।।
नाल घोड़े जैसा ठुकवा कर रहेगा
आज कुत्ता भी इसी जिद पर अड़ा है।।
उसकी दुम सीधी न होगी सत्य है
एक कोशिश और कर ले क्या बुरा है।।
हम उसे फल भेजते हैं फ़ूल भी
और वो छुप छुप के पत्थर फेकता है।।
जो मिला है वो सम्हलता ही नहीं है
और लेंगे और लेंगे बोलता है।।
फ़ितरतन है ढीठ पट्टीदार मेरा
लग रहा है फिर से पिटना चाहता है।।

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा