एक पीड़ा उम्र भर सहता रहा।
एक पीड़ा उम्र भर सहता रहा।
स्वयं से सुनता रहा कहता रहा।।
स्वयं से सुनता रहा कहता रहा।।
दृग निरंतर राह पर पसरे रहे
सहज विह्वल केश भी बिखरे रहे
अश्रु सागर अनवरत बहता रहा।।
सहज विह्वल केश भी बिखरे रहे
अश्रु सागर अनवरत बहता रहा।।
आजकल का प्रेम भी व्यवसाय है
देह तक ही प्रेम के अध्याय है
और मैं किस लोक में रहता रहा।।
देह तक ही प्रेम के अध्याय है
और मैं किस लोक में रहता रहा।।
काम अब सबसे जरूरी काम है
प्रेम क्या है काम का आयाम है
वर्जनाओं का महल ढहता रहा।।
प्रेम क्या है काम का आयाम है
वर्जनाओं का महल ढहता रहा।।
हम पुजारी प्रेम के असफल रहे
वासना के सार्थक प्रतिफल रहे
ढोंग के सन्देश मै गहता रहा।।
वासना के सार्थक प्रतिफल रहे
ढोंग के सन्देश मै गहता रहा।।
Comments
Post a Comment