अजीब दास्ताँ चर्चा-ए-आम है यारों।

अजीब दास्ताँ चर्चा-ए-आम है यारों।
कहीं से मैं न था पर मेरा नाम है यारों।।
मेरा रकीब नहीं है न कोई दुश्मन है
तो दोस्तों से सिवा किसका काम है यारों।।
न इश्तेहार न शोहरत की कोई कोशिश की
मगर शहीदों में उसका भी नाम है यारों।।
मेरा कलाम पढ़के मुझसे पूछते भी हैं
लिखा तो खूब है किसका कलाम है यारों।।
वो जिस गली में मेरे यार का ठिकाना है
उसी गली में मेरी सुबहो-शाम है यारों।।
तुम्हारे गम से मेरी उम्र का दराज़ होना
इसे सजा न कहो ये इनाम है यारों।।
वफा से तेरी ख़ुशी से मैं मर गया गोया
नई तरह का कोई -इंतकाम है यारों।।
हमारा नाम शहीदों की फेहरिश्त में है
हमारे प्यार का ये भी मुकाम है यारों।।
निगाहें नाज़ है खंजर है और मरहम भी
हमारे क़त्ल का हर इन्तज़ाम है यारों।।

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