प्यार क्या था क्या बताते

प्यार क्या था क्या बताते
शब्द कितना जान पाते
भावनाओं के इशारे
उम्र अपनी कट गयी किसके सहारे
एक रिश्ते को निभाने में भी हारे
एक झरने कीतरह हम मनचले थे
ठीक वैसी गर्मजोशी से मिले थे
हमसे टकराकर के पत्थर भी थे हारे
उम्र भर चलते रहे बंधन के मारे
पर न मिल पाये नदी के दो किनारे
प्यार का अस्तित्व सागर में समाया
अंत तक लेकिन समझ में यह न आया
प्यार क्या था ,क्या नदी का सुख जाना
ठीक होता या कि कलकल बहे जाना
प्यार है तो ,एक की खातिर ठहरना,
राह तकना ,राह में पलकें बिछाना,
उम्र भर रहकर प्रतीक्षित
आंसुओं का सूख जाना
कोटरों में आँख का
बुझते दिए सा टिमटिमाना
और अगणित
तारकों को रात भर गिनकर बिताना
प्यार है तो चांदनी में कंवल खिलना
या भ्रमर का गुनगुनाना और
कलियों का चटखना
बाग में बुलबुल का गाना प्यार है तो
क्या निरन्तर हो रहा था
जो प्रवाहित मध्य अपने
प्यार वह था????

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