किसी के तीर पे अपनी कमान मत लादो।
मैं बोल सकता हूँ अपने बयान मत लादो।।
शुआयें शम्स की मेरा ख़याल रखती हैं
सफर में मुझपे कोई सायबान मत लादो।।
कहाँ लिखा है कि मज़हब बहुत ज़रूरी है
ज़रा से दिल पे तुम अपना जहान मत लादो।।
कहाँ से मैं तुम्हें फिरकापरस्त लगता हूँ
मेरी जुबान पे अपनी जुबान मत लादो।।
ये ज़िन्दगी भी कहाँ इम्तेहान से कम है
सो मुझ पे और कोई इम्तेहान मत लादो।।
जरा ज़मीन को करने तो दो कदमबोसी
अभी से सर पे मेरे आसमान मत लादो।।
खुशी से मर तो रहा है उस एक वादे पर
कि साहनी पे नए इत्मिनान मत लादो।।
सुरेश साहनी अदीब
कानपुर
9451545132
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