क़यामे-मुख़्तसर में ख़ाक़  लिखता।।

ये किस्सा इक ठहर में ख़ाक़ लिखता।।


तेरी ज़ुल्फ़े-परीशां की कहानी

भला छोटी बहर में ख़ाक़ लिखता।।


कहानी ज़िन्दगी के ज़ेरोबम की

कोई फँस के भंवर में ख़ाक़ लिखता।।


मुहब्बत को न आयी तंगनज़री

तो नफ़रत के असर में ख़ाक़ लिखता।।


ग़ज़लगोई तसल्ली मांगती है

उधर उलझन थी सर में ख़ाक़ लिखता।।


मेरा शायर गदायी था मिज़ाजन

न् तुलना था गुहर में ख़ाक़ लिखता।।


सुरेश अपनी कहानी कह रहा था

भला मैं रात भर में ख़ाक़ लिखता।।


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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