हम चलें तो कारवां लेकर चलें।

साथ अपने आसमां लेकर चलें।।

उँगलियाँ उठने से बेहतर है कि हम

साथ जख़्मों के निशां लेकर चलें।।

कल ख़ुदा पूछे तो हम बतला सकें

कुछ तो आमाले-ज़हाँ लेकर चलें।।

इस ज़हाँ में पुरसुकूँ कुछ भी नहीं

तुम कहो तुमको कहाँ लेकर चलें।।

हमजुबाँ समझे न मेरी बात तो

साथ हम कितनी ज़ुबाँ लेकर चलें।।

 बहरे कानों से करें फरियाद जब

क्यों न कुछ संगे-फुगां लेकर चले।।

मौत आनी है तो आ ही जायेगी

लाख रहबर पासवां लेकर चलें।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है