र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है तुम श्लील कहो, अश्लील कहो चाहो तो खुलकर गाली दो ! तुम भले मुझे कवि मत मानो मत वाह-वाह की ताली दो ! पर मैं तो अपने मालिक से हर बार यही वर माँगूँगा- तुम गोरी दो या काली दो भगवान मुझे इक साली दो ! सीधी दो, नखरों वाली दो साधारण या कि निराली दो, चाहे बबूल की टहनी दो चाहे चंपे की डाली दो। पर मुझे जन्म देने वाले यह माँग नहीं ठुकरा देना- असली दो, चाहे जाली दो भगवान मुझे एक साली दो। वह यौवन भी क्या यौवन है जिसमें मुख पर लाली न हुई, अलकें घूँघरवाली न हुईं आँखें रस की प्याली न हुईं। वह जीवन भी क्या जीवन है जिसमें मनुष्य जीजा न बना, वह जीजा भी क्या जीजा है जिसके छोटी साली न हुई। तुम खा लो भले प्लेटों में लेकिन थाली की और बात, तुम रहो फेंकते भरे दाँव लेकिन खाली की और बात। तुम मटके पर मटके पी लो लेकिन प्याली का और मजा, पत्नी को हरदम रखो साथ, लेकिन साली की और बात। पत्नी केवल अर्द्धांगिन है साली सर्वांगिण होती है, पत्नी तो रोती ही रहती साली बिखेरती मोती है। साला भी गहरे में जाकर अक्सर पतवार फेंक देता
दादरी नंगी हुयी दनकौर नंगा कर दिया। इस सियासत न हमें हर ओर नंगा कर दिया।। अपनी माँ की सुध न लेते गाय माँ की फ़िक्र है आदमियत छोड़ हिन्दू मुसलमां की फ़िक्र है यूँ भी चिथड़ों में थे हम कुछ और नंगा कर दिया।।..... जाति भाषा धर्म के आधार पर नफरत बढ़ी कमजोर बेइज्जत हुए ज़रदार की इज़्ज़त बढ़ी घर की बातों पर मचाकर शोर नंगा कर दिया।। हर मुहल्ले में कोई लम्पट करे नेतागिरी और उसके लगुवे भगुवे कर रहे दादागिरी हर ठिकाना हर गली हर ठौर नंगा कर दिया।।
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