नौजवानों को ग़ज़ल क्या मालूम।
इन दीवानों को ग़ज़ल क्या मालूम।।
सारे ज़रदार यहीं समझे हैं
इन किसानों को ग़ज़ल क्या मालूम।।
धूप में तप के ग़ज़ल निखरी है
सायबानों को ग़ज़ल क्या मालूम।।
किनसे फरियादे-मेहर करते हो
बदगुमानों को ग़ज़ल क्या मालूम।।
दर्द को सिर्फ़ ज़मीं पढ़ती है
आसमानों को ग़ज़ल क्या मालूम।।
इसमें इमानो-वफ़ा भी चहिए
बेइमानों को ग़ज़ल क्या मालूम।।
इश्क़ की हद है असल हुस्ने ग़ज़ल
शादमानों को ग़ज़ल क्या मालूम।।
साफ लफ़्ज़ों में बगावत है ग़ज़ल
हुक्मरानों को ग़ज़ल क्या मालूम।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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