श्याम छलिया समझ लिया है क्या।
ख़ुद को राधा समझ लिया है क्या।।
चाँद कहते हो ख़ुद को जायज है
मुझको अदना समझ लिया है क्या।।
मोल बिन मिल गया हूँ इतने से
कोई सौदा समझ लिया है क्या।।
क्या कहा फूँक कर उड़ा दोगे
शुष्क पत्ता समझ लिया है क्या।।
इतना अधिकार क्यों जताते हो
सच मे अपना समझ लिया है क्या।।
फिर मैं हर बार क्यों कसम खाऊं
मुझको झूठा समझ लिया है क्या।।
मैं न टूटूंगा सिर्फ़ छूने से
इक खिलौना समझ लिया है क्या।।
तुम तो पत्थर हो मान लेता हूँ
मुझको शीशा समझ लिया है क्या।।
साहनी खुश है अपने जीवन से
तुमने तन्हा समझ लिया है क्या।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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