जब कभी आसमां निहारा कर।
अपने पंखों को भी पसारा कर।।
हुस्न ख़ुद को जहां संवारा कर।
इश्क़ की राह भी बुहारा कर।।
ज़िन्दगी के लिए ज़रूरी हैं
अपने सपनों को यूँ न् मारा कर।।
मंजिलें चल के पास आएंगी
रास्तों की नज़र उतारा कर।।
ख़्वाब ऊँचे ज़रूर रख लेकिन
अपनी चादर में दिन गुज़ारा कर।।
अपने होने पे नाज कर प्यारे
अपनी हस्ती से मत किनारा कर।।
फिर तकल्लुफ की क्या ज़रूरत है
नाम लेकर मुझे पुकारा कर।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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