आसमानों को कद से क्या लेना।

आशिक़ी को हसद से क्या लेना।।


छुप के रहता है आसमानों में

हम को उस ना-बलद से क्या लेना।।


दिल्लगी है अगर तो हुज़्ज़त क्यों

दिल को जद्दोजहद से क्या लेना।।


हुस्न को ख़ुद अबद बनाता है

इश्क़ है तो समद से क्या लेना।।


फिर सनद की किसे ज़रूरत है

इश्क़ को मुस्तनद से क्या लेना।।


हुस्न  हद में रहे   रहे न रहे

इश्क़ वालों को हद से क्या लेना।।


तुम न मजनूँ हुए न समझोगे

इश्क़ को ख़ाल-ओ-ख़द से क्या लेना।।


हम हैं नाकिद-परस्त कुछ समझे

हम को अहले-हमद से क्या लेना।।


साहनी को यकीन है उस पर

हम को उस की ख़िरद से क्या लेना।।


हसद-ईर्ष्या,  ना-बलद -  विदेशी, अपरिचित, ईश्वर

हुज़्ज़त- बहस, जद्दोजहद- यत्न, संघर्ष

अबद- अमर   

समद - बेनयाज, अल्लाह, परवाह न करने वाला

सनद-प्रमाणपत्र

मुस्तनद- प्रमाण देने वाला , मान्य

मजनूँ- दीवाना प्रेमी

ख़ाल-ओ-ख़द -  चेहरा मोहरा रूप

नाकिद - आलोचक

अहले-हमद - प्रशंसा करने वाला

ख़िरद - बुद्धि


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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