मैं अपने छोटे होने की हद तक छोटा हूँ।

ख़ुद्दारी में आसमान जितना ही ऊँचा हूँ।।


बेंत लचक कर नमन किया करता है नदिया को

नदी और नीचे बहकर दिखलाती दुनिया को


मैं भी नदिया की धारा सा बहता रहता हूँ।।


नभ जितने ऊँचे होकर भी नग  हैं धरती पर

सागर को गहराई पर है दम्भ न रत्ती भर


मैं भी जो हूँ वह रहने की कोशिश करता हूँ।।


मेरा हासिल उनके हासिल यह तुलना ही बेमानी है

वे सम्पन्न विरासत से ,गुरबत अपनी रजधानी है


वे कुछ खोने से डरते हैं मैं जीवन जीता हूँ।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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