आप मेरी पसंद थे वरना।

और भी दर बुलंद थे वरना।।


यूँ मसावात अपने हक़ में थे

यां कमानो-कमंद थे वरना।।


मेरे जैसे हज़ार मत कहिए

आप जैसे भी चंद थे वरना।।


ख़ैर करिये कि हमनवां हैं हम

अनगिनत बा-ग़ज़न्द थे वरना।।


सिर्फ़ रिश्ता था आपसे दिल का

और भी दर्द-मन्द थे वरना।।


थी गज़ाला के साथ ख्वाहिश

अस्तबल में समन्द थे वरना।।


आपके इश्क़ में हुए रुसवा

साहनी अर्जुमंद थे वरना।।


मसावात/समीकरण

हमनवां/सुख दुख में सहभागी, समान विचार वाले 

बा-ग़ज़न्द/ दुखी 

कमानो-कमन्द/ धनुष और रस्सी का फंदा

दर्दमंद/ सहानुभूति रखने वाले

ग़ज़ाला/ हिरनी, सुन्दर स्त्री

समन्द/बादामी घोड़ा

अर्जुमंद/ सम्मानित, प्रतिष्ठित


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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