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Showing posts from February, 2016
धर्म मठों से आगे बढ़कर घर पहुंचा तो कर्मकांड की मदिरा पीकर गांवों में ,गांवों से बाहर कस्बों तक ,कस्बों से बाहर सड़कों पर फिर शहर शहर फिर राजमार्ग से महानगर फिर महानगर के संस्थानों में शक्तियुक्त  या शस्त्र युक्त पथ संचलन दिखाता जन मानस में धर्म भीरुता फ़ैलाने को उद्यत होकर पहुंचेगा जब कालर कालर तभी बढ़ेगा धर्म निरंतर जब तुम होंगे भय से कातर तब तक शायद  हो न कन्हैया तब तक शायद हो न कन्हैया!!!!!

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धर्म मठों से आगे बढ़कर घर पहुंचा तो कर्मकांड की मदिरा पीकर गांवों में ,गांवों से बाहर कस्बों तक ,कस्बों से बाहर सड़कों पर फिर शहर शहर फिर राजमार्ग से महानगर फिर महानगर के संस्थानों में शक्तियुक्त  या शस्त्र युक्त पथ संचलन दिखाता जन मानस में धर्म भीरुता फ़ैलाने को उद्यत होकर पहुंचेगा जब कालर कालर तभी बढ़ेगा धर्म निरंतर जब तुम होंगे भय से कातर तब तक शायद  हो न कन्हैया तब तक शायद हो न कन्हैया!!!!!

तस्वीरों में देख के खुश हो लेते हैं

तस्वीरों में देख के खुश हो लेते हैं सरसों शहरों में कैसे दिख सकती है। जिनसे आनंदित हो जाता है तनमन वो चीजें गांवों ही में मिल सकती है।  शहरों में गमले वह भी आधे सूखे उनमे भी आधे काँटों के वंशज हैं। बौने कर के बड़े बड़े पेड़ों के तन कमरों में रख देते अपने देशज हैं।। तन से देशी मन विलायती कपड़ेभी जिन पर मिटटी तो दूर धूल का नाम न हो। गांवों से रिश्तेदारी से खेती बाड़ी से संपर्क तनिक न रखते जब तक काम न हो।।

ढूंढो कही छुपा होगा उजियारे में। सूरज कब छुप सकता है अंधियारे में।।

ढूंढो कही छुपा होगा उजियारे में। सूरज कब छुप सकता है अंधियारे में।। अब तुलसी घूरे पर भी मिल जाती हैं पहले होती थी घर के चौबारे में।। तुम मुझसे एक बार मांगकर देखो तो होती है तासीर टूटते तारे में।। ठंडी आहों से दुनिया जल सकती है इतनी तपन नही जलते अंगारे में।। प्यार के ढाई अक्षर समझ न पाते हम अगर नही समझाते नैन इशारे में।। घर खेती गहना बर्तन सब मोल लगे माँ का ख्याल किसे आता बंटवारे में।। सुख दुःख जीना मरना खेल तमाशा भी क्या क्या है नियति के बंद पिटारे में।। राजपाट के सुर बेमानी लगते हैं ऐसा क्या है जोगी के इकतारे में।। लोग मेरी कविता पर चर्चा करते हैं क्या क्या लिख देता है अपने बारे में।।

यूँ बिगाड़ी अपनी किस्मत हाय रे!!!!

यूँ बिगाड़ी अपनी किस्मत हाय रे!!!! तोड़ डाली बंदिशे औ दायरे।। मेरी खुशियाँ रास्ते में बँट गयी उम्र फिर भी जैसे तैसे कट गयी और बाक़ी भी यूँ ही कट जाए रे। पास होकर भी कहाँ हम पास हैं हर घडी पतझड़ कहाँ मधुमास है और अब पतझर ही मन को भाए रे! कब तलक झीनी चदरिया ओढ़ते प्रेम की आदत कहाँ तक छोड़ते तन तम्बूरा तार टूटे जाए रे।। राह तकते नैन कोटर में बसे देह लेकर अस्थियों में जा धंसे निपट निष्ठुर किन्तु तुम ना आये रे।। रात थक कर चांदनी में सो गयी चांदनी भी भोर होते खो गयी तुम कहाँ हो कोई तो बतलाए रे!!!

हाँ वो मेरी बिरादरी का है।

हाँ वो मेरी बिरादरी का है। वो भी शायर है खूब लिखता है।। वो मेरा एहतराम करता है देखते ही सलाम करता है मेरा उससे कोई तो रिश्ता है।। उसकी बातें हमें खटकती हैं उसकी बातों में साफगोई है जो भी कहता है मुंह पे कहता है।। मैं पुजारी हूँ वो नमाज़ी है मेरी आदत में बेनयाजी है फिर भी मेरा ख़याल रखता है।।मेरा उससे...

हमें लूटने के तरीके पता है।

हमें लूटने के तरीके पता है। हमें वोट देना तुम्हारी खता है।। हमें सबकी सेहत की चिंता बहुत है रसोई से अरहर तभी लापता है।। उसे जम के पीटो इसे रौंद डालो ये मेरी निज़ामत में हक़ मांगता है।। अभी पेंच हमने तनिक हैं घुमाये अभी से ये बन्दा बहुत चीखता है।। इसे बोलना है तो हमसे बताये सवाल है कि क्यों बोलना चाहता है।। इसे एड और गिफ्ट हरगिज न देना ये जनता की आवाज ही छापता है।। तुम जी रहे थे तुम्हारी खता थी अब लुट रहे हो तुम्हारी खता है।। मेरे हाथ में अस्त्र है इस वजह से सभी मानते हैं कि हम देवता हैं।।

कहीं आने जाने की फुर्सत नहीं है।

कहीं आने जाने की फुर्सत नहीं है। हमें सुस्तीयाने की फुर्सत नहीं है।। दोस्त और दुश्मन पता चल तो जाते अभी आज़माने की फुर्सत नही है।। हमें तुम न चाहो तुम्हारी बला से हमें दिल जलाने की फुर्सत नहीं है।। अगर तुमको आने में तकलीफ है तो हमें भी बुलाने की फुर्सत नहीं है।। सच बोलने में समय कम लगे है बहाना बनाने की फुर्सत नही है।। तुम याद करते हमें हो न पाया हमें भूल जाने की फुर्सत नही है।।

मत कहो कि नेह का सौदा हुआ।

मत कहो कि नेह का सौदा हुआ। जब हुआ तब देह का सौदा हुआ।। माँ पिता का प्रेम समझे तो कोई वन के बदले गेह का सौदा हुआ।। भूख से व्याकुल अभागो के लिए लाज से स्नेह का सौदा हुआ।। सिर्फ सीता की परीक्षा इस तरह धर्म से संदेह का सौदा हुआ।। खुल गए बाजार गुरुओं के यहां प्राश रस अवलेह का सौदा हुआ।।

एक पीड़ा उम्र भर सहता रहा।

एक पीड़ा उम्र भर सहता रहा। स्वयं से सुनता रहा कहता रहा।। दृग निरंतर राह पर पसरे रहे सहज विह्वल केश भी बिखरे रहे अश्रु सागर अनवरत बहता रहा।। आजकल का प्रेम भी व्यवसाय है देह तक ही प्रेम के अध्याय है और मैं किस लोक में रहता रहा।। काम अब सबसे जरूरी काम है प्रेम क्या है काम का आयाम है वर्जनाओं का महल ढहता रहा।। हम पुजारी प्रेम के असफल रहे वासना के सार्थक प्रतिफल रहे ढोंग के सन्देश मै गहता रहा।।

परमात्मा रक्षा करो

परमात्मा रक्षा करो रक्षा करो रक्षा करो मूर्ति तुम्हारी नहीं जानता कैसे हो तुम मैं नहीं जानता अगर तुम कहीं हो तो संकेत दो मुझे कुछ ही करने का आदेश दो मेरे लिए कुछ तो करो।। सूरज औ चंदा में तेरी गति हैं स्वासों में तेरी ही पुनरावृति प्राणों में तेरा ही आभास है तू ही धरा वायु आकाश है यह जानने को ज्ञान दो।।

किसे दिखाते पाँव के छाले सब थे ऊँचे दर्जे वाले।।

किसे दिखाते पाँव के छाले सब थे ऊँचे दर्जे वाले।। अपना पेट भर रहे सारे किसने किसको दिए निवाले।। अब वो मरहम ले आया है सूख गए जब फूटे छाले।। बगुला भगत आज के नेता तन के उजले मन के काले।। पांच बरस में आज दिखा है खींस निपोरे माला डाले।। अपना पेट भर रहे सारे किसने किसको दिए निवाले।। अब वो मरहम ले आया है सूख गए जब फूटे छाले।। बगुला भगत आज के नेता तन के उजले मन के काले।। पांच बरस में आज दिखा है खींस निपोरे माला डाले।।

प्यार क्या था क्या बताते

प्यार क्या था क्या बताते शब्द कितना जान पाते भावनाओं के इशारे उम्र अपनी कट गयी किसके सहारे एक रिश्ते को निभाने में भी हारे एक झरने कीतरह हम मनचले थे ठीक वैसी गर्मजोशी से मिले थे हमसे टकराकर के पत्थर भी थे हारे उम्र भर चलते रहे बंधन के मारे पर न मिल पाये नदी के दो किनारे प्यार का अस्तित्व सागर में समाया अंत तक लेकिन समझ में यह न आया प्यार क्या था ,क्या नदी का सुख जाना ठीक होता या कि कलकल बहे जाना प्यार है तो ,एक की खातिर ठहरना, राह तकना ,राह में पलकें बिछाना, उम्र भर रहकर प्रतीक्षित आंसुओं का सूख जाना कोटरों में आँख का बुझते दिए सा टिमटिमाना और अगणित तारकों को रात भर गिनकर बिताना प्यार है तो चांदनी में कंवल खिलना या भ्रमर का गुनगुनाना और कलियों का चटखना बाग में बुलबुल का गाना प्यार है तो क्या निरन्तर हो रहा था जो प्रवाहित मध्य अपने प्यार वह था????

कल जब हम चल देंगे तब पछताओगे।

कल जब हम चल देंगे तब पछताओगे। तब कितना भी चाहो रोक न पाओगे।।कल.... अभी तुम्हारी रातें बहुत रुपहली हैं अभी तुम्हारे दिन भी बहुत सुनहरे हैं। अभी तुम्हारी चाल देखने की खातिर चाँद सितारे चलते ठहरे ठहरे हैं।। चन्द दिनों के बाद अमावस आनी है इन सब बातों पर कब तक इतराओगे।।कल.... वैसे तेरा इंतज़ार तो अब भी है ये दिल कुछ कुछ बेकरार तो अब भी है। वैसे पहले जैसी दीवानगी कहाँ प्यार का पर थोड़ा बुखार तो अब भी है।। पर जो गांठ हृदय में तुमने डाली थी इसके रहते कैसे नजर मिलाओगे।।कल.....

धूप जिंदगी छाँव जिंदगी जैसे कोई पड़ाव जिंदगी सिंधु कहे ठहराव जिंदगी नदिया कहे बहाव जिंदगी।।

जैसे कोई पड़ाव जिंदगी सिंधु कहे ठहराव जिंदगी नदिया कहे बहाव जिंदगी।। धूप जिंदगी छाँव जिंदगी जैसे कोई पड़ाव जिंदगी सिंधु कहे ठहराव जिंदगी नदिया कहे बहाव जिंदगी।। bड़े बड़े शातिर लोगों को दे देती है दांव जिंदगी।। दुनिया के स्टेशन पर है आओ जिंदगी जाव जिंदगी।। भरम टूटना ही है एक दिन केवल मन बहलाव जिंदगी।। लाश बना शहरों में भटका छूट गया जब गांव जिंदगी।। मौत भले दे दे मुआवजा फिरती है बेभाव जिंदगी।। तेरी बेवफाई के चर्चे होते हैं हर ठाँव जिंदगी।। फिर तुझसे क्यों हो जाता है इतना लाग-लगाव जिंदगी।। इतने नाटक इतने नखरे क्यों खाती है भाव जिंदगी।। जो मरने से डर जाते हैं देती उनको घाव जिंदगी।। पर मेरे मन को भाता है तेरा छली स्वभाव जिंदगी।। मैं तुझ को जम कर जीयूँगा तू क्या देगी दांव जिंदगी।।

ये नामुराद ख्यालों में मर मिटे हम तुम।

ये नामुराद ख्यालों में मर मिटे हम तुम। जबाब हो के सवालों में मर मिटे हम तुम।। ये शौक था कि अंधेरों से लड़ के जीतेंगे ये हैफ है कि उजालों में मर मिटे हम तुम।। हमें गुमान बहुत था हमारी गैरत पर तो कैसे फेके निवालों में मर मिटे हम तुम।। पनाह हमसे समंदर भी मांगते थे कभी और आज मौसमी नालों में मर मिटेे हम तुम।। बड़े शरीर हैं ,शातिर हैं ,चालबाज भी हैं ये कैसे चाहने वालों पे मर मिटे हम तुम। निकाल ले गया आँखें दिखा के कुछ सपने दलील सुन के दलालों पे मर मिटे हम तुम।। हमारे सुखों की सीता को ले उड़ा रावण जो स्वर्ण मृग की उछालो पे मर मिटे हमतुम।।

अब तुम्हारे बिन उमर कटती नहीं है।

अब तुम्हारे बिन उमर कटती नहीं है। घट रहे हैं दिन उमर कटती नहीं है।। यूँ न झिझको यूँ न शर्माती फिरो यूँ भी मरना है तो उल्फ़त में मरो अब भी है मुमकिन उमर कटती नहीं है।। चाहती हो तुम कहो या ना कहो दर्द है कोई तो हमसे भी कहो एक साथी बिन उमर कटती नहीं है।। सत्य से कब तक कटोगी बावरी ओढ़नी होगी तुम्हे भी चूनरी एक न एक दिन उमर कटती नहीं है।। दिल धड़कता है तुम्हारे वास्ते किसलिए अपने अलग हों रास्ते तारकों को गिन उमर कटती नहीं है।। इस जनम में हम अगर न मिल सकेंगे दस जनम तक हम बने फिरते रहेगे नाग या नागिन उमर कटती नहीं है।।

तुमको मिलती ही नहीं फुर्सत कभी।

तुमको मिलती ही नहीं फुर्सत कभी। तुमसे होती है मुझे नफरत कभी।। तुम शुरू से आज तक बदले नहीं अब बदल डालो यही आदत कभी।। प्यार करना सीखने के वास्ते काम आती है बुरी सोहबत कभी।। जाने कब की बात बतलाते हैं वो कह रहे हैं मुल्क था जन्नत कभी।। काम आता है बहुत इब्लीस भी याद करना हो अगर दिक्कत कभी।। मौत ने जितना दिया वो कम नही जिंदगी ने कब दिया मोहलत कभी।।

साथ बनो एहसान मत बनो।

साथ बनो एहसान मत बनो। अपने घर मेहमान मत बनो।। हमने दिल में जगह दी तुम्हें अब मालिक-ए-मकान मत बनो।। हमें तेरी हैसियत पता है फर्जी आलाकमान मत बनो।। अल्ला ने इंसान बनाया कम से कम शैतान मत बनो।। चुटपुटिया से डर जाते हो हमसे ज्यादा डॉन मत बनो।। दो लाइन कविता लिख करके घनानंद रसखान मत बनो।। लम्पटगीरी और छीनरपन- करने को भगवान मत बनो।। बिक जायेगी लुटिया थारी ज्यादा दया निधान मत बनो।। कुछ तो सीखो दुनियादारी इतने भी नादान मत बनो।।

शायद उनका साथ दें परछाईयाँ ।

शायद उनका साथ दें परछाईयाँ । जी रहे जो ओढ़ कर तन्हाईयाँ।। डालियों का झूमना मधुमास में याद आती हैं तेरी अँगड़ाइयाँ।। आदमी की जान सस्ती हो गयी कौन कहता है कि हैं महंगाईयां।। प्यार बिकता ही नहीं बाजार में तुमको सौदे में मिली ऐय्यारियां ।। ऊँचे महलों में मिले संदेह हैं झोंपड़ी में है जो खातिरदारियाँ।। बालपन के साथ वो दौलत गयी बेवजह खुशियाँ मेरी किलकारियाँ।। अब शहर के रास्तों में खो गयी गांव तक जाती थीं जो पगडंडियाँ।। अपने बच्चों को कहाँ दिखलाओगे मेड़ मग महुवारियां अमराइयाँ।। बाथ टब शावर में मिलने से रही गांव के तालाब वाली मस्तियाँ।। चार कंधे भी नही होते नसीब चल पड़ीं आजकल वो लारियां।।

कुछ कुछ बहक गए थे कदम चार चल लिए।

कुछ कुछ बहक गए थे कदम चार चल लिए। ठोकर लगी तो हमने इरादे बदल लिए।। कुछ लोग चीखते रहे इन्साफ के लिए बाकी तमाम लोग घरों को निकल लिए।। सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता गया शहर यूँ ही हजारों गांव शहर ने निगल लिए।। किसका लिबास कैसा था वो क्या बताएगी सब थे अमीर घर गए कपड़े बदल लिए।। हम जूझते हैं खेत में बैल और हल लिए। वो खुश है कागजों में हमारी फसल लिए।। तुमने कहा था साथ निभाएंगे उम्र भर फिर किस तरह जहां से अकेले टहल लिए।। नेकी करो बदले में कुछ उम्मीद मत करो जिसने लगाये पेड़ कहाँ उसने फल लिए।। बेसुध कभी हुए भी तो बस नाम के लिए इक पल को डगमगाए मगर खुद सम्हल लिए।। धरती की कोख को किसी शिव की तलाश है समंदर तड़प रहा है उदर में गरल लिए।। मुहब्बत के जायरीन कहीं भी नही मिले मुमताज क्या करेगी ताज का महल लिए।।

उस पार अगर जीवन है तो

उस पार अगर जीवन है तो चलते हैं प्रभु का मन है तो...उस हम किस से नेह जगाते हैं जब नश्वर सारी बातें हैं कच्चे घट सा यह तन है तो...उस ये जीवन तब तक जीवन है जब तक तन में स्पंदन है यदि जीवन भी बंधन है तो...उस सांसे कब साथ निभाती हैं हाँ मृत्यु हमें कब भाती है प्रियतम सा आलिंगन है तो...उस ये काया कितनी जीर्ण हुयी इसकी समयावधि पूर्ण हुयी वस्त्रों का परिवर्तन है तो.... चलते हैं प्रभु का मन है तो उस पार अगर जीवन है तो

मौसम जैसा सब बदल गया।

मौसम जैसा सब बदल गया। तुम क्या बदले रब बदल गया।। सब स्वप्न सरीखा लगता था जग रंग बिरंगा लगता था सारा जग अपना लगता था इक पल में मनसब बदल गया।। अब लगता है क्यों प्यार किया अपना जीवन बेकार किया ऐसा क्या अंगीकार किया जीवन का मतलब बदल गया।। जो बीत गया कब आता है जो चला गया कब लौटा है मन अब काहे पछताता है जब बदल गया तब बदल गया।।

घर-गिरस्ती खेत तक गिरवी पड़ा है।

घर-गिरस्ती खेत तक गिरवी पड़ा है। बात लेकिन कितनी लम्बी झाड़ता है।। नाल घोड़े जैसा ठुकवा कर रहेगा आज कुत्ता भी इसी जिद पर अड़ा है।। उसकी दुम सीधी न होगी सत्य है एक कोशिश और कर ले क्या बुरा है।। हम उसे फल भेजते हैं फ़ूल भी और वो छुप छुप के पत्थर फेकता है।। जो मिला है वो सम्हलता ही नहीं है और लेंगे और लेंगे बोलता है।। फ़ितरतन है ढीठ पट्टीदार मेरा लग रहा है फिर से पिटना चाहता है।।

ख़ार गुल का अगर पड़ोसी है।

ख़ार गुल का अगर पड़ोसी है। तुम कहो गुल कहाँ से दोषी है।। आग घर में लगा के खुश होना ये कहाँ की शमाफरोशी है।।

काश कि तूने जाना होता।

काश कि तूने जाना होता। प्यार मेरा पहचाना होता।। काश कि हम कुछ पहले मिलते और ही कुछ अफ़साना होता।। काश कि मेरे दिल के रस्ते तेरा आना जाना होता। काश की चाहत बढ़ती जाती ज्यूँ ज्यूँ प्यार पुराना होता।। काश कि हम तुम मिल कर गाते ऐसा एक तराना होता। तुम मेरी दीवानी होती मैं तेरा दीवाना होता।। इन नैनों का नेह निमंत्रण काश कि तूने माना होता। काश कि हम संग जीते मरते दुश्मन लाख जमाना होता।।

ये परिंदा अभी कफ़स में हैं।

ये परिंदा अभी कफ़स में हैं। गुल मगर अब भी कशमकश में है।। वो लहू देख मुस्कुराता है फितरतें कुछ अजीब उसमे हैं।। अपनी आदत बदल नहीं पाता रोज खाता हज़ार कसमें हैं।। ऐब दौलत में कुछ नहीं होता ऐब इंसान की हवस में है।। हौसला है तो इक भरोसा है कामयाबी हमारे बस में है।। कू-ए-महबूब से जो आती थीं खुशबूयें आज भी नफ़स में हैं।। राह सदियों तेरी निहारी है तू भले सोलहवें बरस में हैं।। इक नज़र भर ही उसको देखा है और महफ़िल तभी से गश में है।।

मैं तो यूँ भी था परेशान बहुत।

मैं तो यूँ भी था परेशान बहुत। मैंने थोडा सा कहा जान बहुत।। एक पत्थर को सनम मान लिया आईना दिल का है हैरान बहुत।। एक अल्लाह कहाँ तक देखे आज दुनियाँ में हैं शैतान बहुत।। एक गुल इश्क का अफशां करके ये चमन हो गया वीरान बहुत।। झलक दिखला के हमें लूट लिया यार तुम हो तो बेईमान बहुत।। जां गयी दिल से बड़ा बोझ गया मेरे कातिल तेरा एहसान बहुत।। लोग कहते हैं मेरे बारे में आदमी था अज़ीमो-शान बहुत।। उलझनें दिल में जमानें भर की छोटे से घर में हैं मेहमान बहुत।।

मैं किसी धनवान का बेटा न था।

मैं किसी धनवान का बेटा न था। इस कदर फिर भी गया गुजरा न था।। तेरा ग़म यादें तेरी औ दर्दे-दिल मैं किसी सूरत कभी तन्हा न था।। मुझको दुनिया की न थी परवाह पर तुम बदल जाओगे ये सोचा न था।। उनका गुस्सा देख कर हैरत हुयी चाँद को जलते कभी देखा न था।। फेर कर मुंह चल दिए थे किसलिए दिल के बदले मैंने कुछ माँगा न था।। प्यार में सब हारना भी जीत है ये सबक स्कूल में सीखा न था।।

आदमी तूने रचे छोटे बड़े। राम हम नाहक तेरे पीछे लड़े।।

आदमी तूने रचे छोटे बड़े। राम हम नाहक तेरे पीछे लड़े।। आज दुनिया चाँद से आगे हुयी हम जहाँ थे हैं वहीँ अब भी खड़े।। जो गया वो लौट कर आता नहीं चीख लो तुम फाड़ डालो फेफड़े।। मीठी बातों से बचो यूँ आजकल मीठे फल होते हैं अंदर से सड़े।। तुमको हसरत थी कि हम आवाज दे तुम पुकारो हम भी जिद पर थे अड़े।। क्या मिलेगा दर्द और गम के सिवा मत उखाड़ो व्यर्थ में मुर्दे गड़े।। हम मुसाफिर थे फ़क़त इक रात के भोर होते चल पड़े तो चल पड़े।। वक्त था तो हर तरफ छाये थे वो वक्त गुजरा साफ हो गए सूपड़े।।

मेरी खूबी मेरे उनवान में दब जाती है।

मेरी खूबी मेरे उनवान में दब जाती है। मेरी अज़मत मेरी पहचान में दब जाती है।। मेरे अजदाद को तालीम की जहमत न हुयी मेरी उम्मत इसी एहसान में दब जाती है।। मेरे शायर को भी शोहरत मिले इनाम मिले हसरतें ये दिल-नादान में दब जाती हैं।। अपनी सरकार है ये जुल्म कहाँ करती है अब रियाया इसी गूमान में दब जाती है।। आज रोटी के लिए फ़िक्र गयी बात हुयी भूख अब हिन्दू-मुसलमान में दब जाती है।। ख्वाहिशें,हसरतें भी शौक भी उम्मीदें भी वक्त के तुगलकी फरमान में दब जाती हैं।। अच्छी बातें जो लिखी गीता-ओ-कुरआन में हैं मुद्दा-ए-गीता-ओ-क़ुरआन में दब जाती हैं।।

अजीब दास्ताँ चर्चा-ए-आम है यारों।

अजीब दास्ताँ चर्चा-ए-आम है यारों। कहीं से मैं न था पर मेरा नाम है यारों।। मेरा रकीब नहीं है न कोई दुश्मन है तो दोस्तों से सिवा किसका काम है यारों।। न इश्तेहार न शोहरत की कोई कोशिश की मगर शहीदों में उसका भी नाम है यारों।। मेरा कलाम पढ़के मुझसे पूछते भी हैं लिखा तो खूब है किसका कलाम है यारों।। वो जिस गली में मेरे यार का ठिकाना है उसी गली में मेरी सुबहो-शाम है यारों।। तुम्हारे गम से मेरी उम्र का दराज़ होना इसे सजा न कहो ये इनाम है यारों।। वफा से तेरी ख़ुशी से मैं मर गया गोया नई तरह का कोई -इंतकाम है यारों।। हमारा नाम शहीदों की फेहरिश्त में है हमारे प्यार का ये भी मुकाम है यारों।। निगाहें नाज़ है खंजर है और मरहम भी हमारे क़त्ल का हर इन्तज़ाम है यारों।।

खुद को यूँ भी तलाशता हूँ मैं।

खुद को यूँ भी तलाशता हूँ मैं। शब्द दर शब्द जूझता हूँ मैं।। चैन से सो सकें मेरे अपने इसलिए रात जागता हूँ मैं।। तुम जबाबों में खोजते हो मुझे और सवालों में भटकता हूँ मैं।। इस क़दर टूटकर न चाहो मुझे वरना समझूँगा देवता हूँ मैं।। किसी पत्थर से सच नहीं कहता जानता हूँ कि आईना हूँ मैं।। मैं तेरा इन्तिज़ार कर लूँगा आख़िरश तुझको चाहता हूँ मैं।।

आदमी किससे वफ़ा करता है।

आदमी किससे वफ़ा करता है। आँख फिरते ही दगा करता है।। मुझको हंसने भी कहाँ देता है सिर्फ रोने से मना करता है।। याद करता है मुझे शब-ओ-सहर और मिलने से बचा करता है।। ज़ख़्म देता है मुझे रह रह कर मेरे जीने की दुआ करता है।। इस तरह मुझसे मुहब्बत करके मेरी नफरत से बचा रहता है।।

मैंने देखा मेरे जनाजे में।।

आज भी लोग चाहते हैं मुझे मैंने देखा मेरे जनाजे में।। ख़ुशी ले लें उधार में लेकिन डर बहुत है तेरे तकाजे में।। कई खामोश दर्द होते हैं शादी-ब्याहों में गाजे-बाजे में।।

आप मुझे अनवरत दिखे।

आप मुझे अनवरत दिखे। जब पडी जरूरत तुरत दिखे।। मैंने भी सपने देखे हैं कुछ सोते कुछ जाग्रत दिखे।। हर दीन धर्म की कोशिश है कैसे सबको आख़िरत दिखे।। ये दुनिया कैसी दुनिया है जिसमे हर गाड़ी चलत दिखे।। सब माया है कहने वाले माया के पीछे भगत दिखे।। हमने खुद को कब देखा है दूसरे सभी को गलत दिखे।। सब कहे राम का नाम सत्य पर राम नाम विस्मरत दिखे।।

निर्भया भयातुर तड़पत बा

अब न्याय धुरी से नाच गईल । जब असली मुजरिम बाच गईल।। अब कहाँ दामिनी कड़कत बा निर्भया भयातुर तड़पत बा कानून के डण्डा चटकत बा बा कहत झूठ अब साँच भईल।। अब कहाँ केजरीवाल हवें बड़का गुण्डन के काल हवें दादा उनकर लोकपाल हवें अब कहवाँ उनकर जाँच गईल।। असली गुण्डा त बाच गईल।।

रउरे तकला से सब हरियराये लगल।

रउरे तकला से सब हरियराये लगल। मन मरुस्थल में उपवन बुझाए लगल।। जइसे जइसे समय चक्र आगे बढ़ल नेह महकल दिशा गमगमाये लगल।। हमके आपन दशा का कहीं का भयल मन के अमवारियो बौरआये लगल।। उनके रहिया निहारत गईल जिन्नगी अईलें जब देह टिकठी प जाए लगल।। उनके केतना बा लमहर उमर का कहीं याद कइलीं आ फोन घनघनाये लगल।।

Coherism

समन्वयवाद (Coherism) की परिभाषा:-- किसी समाज को शान्तिपूर्ण और सुचारू ढंग से चलाने के लिए विभिन्न मतों के मध्य तालमेल स्थापित करना पड़ता है।मतभिन्नताओं के  मध्य समन्वय   ही समनवयवाद है।

समन्वयवाद के परिप्रेक्ष्य में

 समन्वयवाद के कुछ बिंदु:- 1.समन्वय निषादों का प्रारंभिक गुण है।वे प्रकृति अर्थात जल जंगल और जमीन से हर परिस्थिति में समन्वय स्थापित करते हैं। 2.निषाद ही संगीत के जनक हैं।संगीत के सातो स्वर निषाद के पर्यायवाची हैं। 3.संगीत परस्पर विरोधी सुरों का समन्वय है। 4.संसार में प्रत्येक संभावित समस्याओं का अंत समन्वय है। 5.शांतिपूर्ण सहअस्तित्व और विश्वशांति समन्वय से ही सम्भव है। 6.सिंधु घाटी सभ्यता नदी के किनारे विकसित प्रथम मानव सभ्यता है।यह जल और थल के संसाधनों का समन्वयवादी  उपयोग का अनुपम उदाहरण था। 7.सिंधु घाटी सभ्यता काल तक आर्यों का आगमन नहीं हुआ था।तब निषाद संस्कृति अपने चरम पर थी। 8.भारत में निषाद संस्कृति का पुनर्जागरण समन्वयवाद को अपना कर ही सम्भव है।समाज के बहत्तर उपकुलों और सैकड़ों जातीय उपनामों का समन्वय ही इस उत्थान का कारक हो सकता है। 9.आर्थिक और सामाजिक रूप से अक्षम प्रत्येक व्यक्ति तक पुनर्वास और राहत ही समन्वयवाद का लक्ष्य है। 10.समन्वयवाद किसी एक नेता या दल का विकास नहीं चाहता।समनवयवाद समाज के अंतिम छोर के व्यक्ति में भी नेतृत्व की भावना का विकास चाहता है,...