मैं अपने छोटे होने की हद तक छोटा हूँ। ख़ुद्दारी में आसमान जितना ही ऊँचा हूँ।। बेंत लचक कर नमन किया करता है नदिया को नदी और नीचे बहकर दिखलाती दुनिया को मैं भी नदिया की धारा सा बहता रहता हूँ।। नभ जितने ऊँचे होकर भी नग हैं धरती पर सागर को गहराई पर है दम्भ न रत्ती भर मैं भी जो हूँ वह रहने की कोशिश करता हूँ।। मेरा हासिल उनके हासिल यह तुलना ही बेमानी है वे सम्पन्न विरासत से ,गुरबत अपनी रजधानी है वे कुछ खोने से डरते हैं मैं जीवन जीता हूँ।। सुरेश साहनी, कानपुर
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Showing posts from February, 2024
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नौजवानों को ग़ज़ल क्या मालूम। इन दीवानों को ग़ज़ल क्या मालूम।। सारे ज़रदार यहीं समझे हैं इन किसानों को ग़ज़ल क्या मालूम।। धूप में तप के ग़ज़ल निखरी है सायबानों को ग़ज़ल क्या मालूम।। किनसे फरियादे-मेहर करते हो बदगुमानों को ग़ज़ल क्या मालूम।। दर्द को सिर्फ़ ज़मीं पढ़ती है आसमानों को ग़ज़ल क्या मालूम।। इसमें इमानो-वफ़ा भी चहिए बेइमानों को ग़ज़ल क्या मालूम।। इश्क़ की हद है असल हुस्ने ग़ज़ल शादमानों को ग़ज़ल क्या मालूम।। साफ लफ़्ज़ों में बगावत है ग़ज़ल हुक्मरानों को ग़ज़ल क्या मालूम।। सुरेश साहनी, कानपुर
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हम चलें तो कारवां लेकर चलें। साथ अपने आसमां लेकर चलें।। उँगलियाँ उठने से बेहतर है कि हम साथ जख़्मों के निशां लेकर चलें।। कल ख़ुदा पूछे तो हम बतला सकें कुछ तो आमाले-ज़हाँ लेकर चलें।। इस ज़हाँ में पुरसुकूँ कुछ भी नहीं तुम कहो तुमको कहाँ लेकर चलें।। हमजुबाँ समझे न मेरी बात तो साथ हम कितनी ज़ुबाँ लेकर चलें।। बहरे कानों से करें फरियाद जब क्यों न कुछ संगे-फुगां लेकर चले।। मौत आनी है तो आ ही जायेगी लाख रहबर पासवां लेकर चलें।। सुरेशसाहनी, कानपुर
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प्यार के कुछ पल मिले तो रात में। फूल मुरझाये खिले तो रात में।। वो सुबह से शाम तक संग में रही फिर भी हम उससे मिले तो रात में।। चौका बासन भजन भोजन सब दिए कुछ किये शिकवे गिले तो रात में।। फागुनी मस्ती बही भर दोपहर अधर पत्तों से हिले तो रात में।। द्वार आँगन कोठरी से देहरी कुछ शिथिल पड़ते किले तो रात में सुरेशसाहनी, कानपुर
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बेशक ऐसा मंजर होगा। सबकी आंखों में डर होगा।। फिर उसके अहबाब बढ़े हैं फिर ईसा सूली पर होगा।। उम्मीदें वो भी सराय में इक दिन तो अपना घर होगा।। दौलत होगी चैन न होगा नींद न होगी बिस्तर होगा।। बेटा हो जब आप बराबर बेटा बनना बेहतर होगा।। प्रेम गली कितनी संकरी है अंदाज़ा तो चलकर होगा।। पत्थर कब सुनता है प्यारे ऐसा ही वो ईश्वर होगा।। दबे पाँव आती है चलकर मौत को भी कोई डर होगा।। सुरेशसाहनी, कानपुर
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फाग चलत बा फागुन में रंग जमत बा फागुन में देवरो दूसर खोजत बा घात करत बा फागुन में भैया बाड़े दुबई में गांव बहत बा फागुन में तुहउँ अईबू सावन ले देहिं जरत बा फागुन में अमवो तक बौराईल बा सब गमकत बा फागुन में रउरे अइसे ताकी जिन मन बहकत बा फागुन में देहिं थकल मन मातल बा भर असकत बा फागुन में।। सुरेशसाहनी, कानपुर
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होरी है मस्तन की होरी होरी है निरे अलमस्तन की होरी सब रँगन की होरी होरी है अबीर गुलालन की होरी है पढ़े निपढ़े सब की होरी है अदीब गँवारन की होरी नहिं सन्त असन्तन की होरी है निरे होरियारन की होरी है तो मधुबन है हर सूं होरी है तो यौवन है हर सूं यौवन है जो प्रेम में भीगा हुआ तब होरी है फागुन है हर सू होरी है तो गोकुल धाम है मन ब्रज है वृंदावन है हर सूं होरी है तो राधा दिखे हर सुं होरी है तो मोहन है हर सूं।। बड़े बूढ़े लगे लरिका जइसे अरु जेठ निगाह से घात करे है अब सास ननद परिहास करे अरु देवर काम को मात करे है यह फागुन जेठ समान लगे अरु रंग की आग अघात लगे है अब होरी कहाँ मोहे भाए सखी पिय जाने कहाँ दिन रात करे है सुरेश साहनी, कानपुर
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ज़माने भर का वसील होना। है जुर्म अपना क़तील होना।। हमारी आदत सी पड़ गयी है सबाब करना ज़लील होना।। तमाम रिंदों की इक वज़ह है तुम्हारी आँखों का झील होना।। के दौरे हाज़िर में लाज़मी है गुलों की ख़ातिर फ़सील होना।। तमाम अपनों को खल रहा है जनाजा अपना तवील होना।। जिन्हें चुना उनको दोष क्यों दें हमें पड़ेगा कफ़ील होना।। सुरेश साहनी,कानपुर वसील/ मित्र या साथ निभाने वाले क़तील/जिसका क़त्ल हुआ हो फ़सील/ चारदीवारी, सुरक्षा घेरा तवील/लम्बा होना कफ़ील/ दायित्व लेने वाला, जिम्मेदार
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आप मेरी पसंद थे वरना। और भी दर बुलंद थे वरना।। यूँ मसावात अपने हक़ में थे यां कमानो-कमंद थे वरना।। मेरे जैसे हज़ार मत कहिए आप जैसे भी चंद थे वरना।। ख़ैर करिये कि हमनवां हैं हम अनगिनत बा-ग़ज़न्द थे वरना।। सिर्फ़ रिश्ता था आपसे दिल का और भी दर्द-मन्द थे वरना।। थी गज़ाला के साथ ख्वाहिश अस्तबल में समन्द थे वरना।। आपके इश्क़ में हुए रुसवा साहनी अर्जुमंद थे वरना।। मसावात/समीकरण हमनवां/सुख दुख में सहभागी, समान विचार वाले बा-ग़ज़न्द/ दुखी कमानो-कमन्द/ धनुष और रस्सी का फंदा दर्दमंद/ सहानुभूति रखने वाले ग़ज़ाला/ हिरनी, सुन्दर स्त्री समन्द/बादामी घोड़ा अर्जुमंद/ सम्मानित, प्रतिष्ठित सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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आप नत्थू के लख्त हैं शायद। हो न हो अंधभक्त हैं शायद।। पंछियों की भी जात पूछे है आप वो ही दरख़्त हैं शायद।। सिर तवारीख पे जो धुनते हैं दौरे हाज़िर वो वक़्त हैं शायद।। आप भी थे तमाशबीनों में आप मौकापरस्त हैं शायद।। मुल्क की फ़िक्र कौन करता है सब सियासत में मस्त हैं शायद।। आज् कोई पुलिस न पकड़ेगी आज हाकिम की गश्त है शायद।। सुरेश साहनी
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श्याम छलिया समझ लिया है क्या। ख़ुद को राधा समझ लिया है क्या।। चाँद कहते हो ख़ुद को जायज है मुझको अदना समझ लिया है क्या।। मोल बिन मिल गया हूँ इतने से कोई सौदा समझ लिया है क्या।। क्या कहा फूँक कर उड़ा दोगे शुष्क पत्ता समझ लिया है क्या।। इतना अधिकार क्यों जताते हो सच मे अपना समझ लिया है क्या।। फिर मैं हर बार क्यों कसम खाऊं मुझको झूठा समझ लिया है क्या।। मैं न टूटूंगा सिर्फ़ छूने से इक खिलौना समझ लिया है क्या।। तुम तो पत्थर हो मान लेता हूँ मुझको शीशा समझ लिया है क्या।। साहनी खुश है अपने जीवन से तुमने तन्हा समझ लिया है क्या।। सुरेश साहनी, कानपुर
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अगर हम लड़ रहे हैं तीरगी से। उन्हें परहेज क्यों है रोशनी से।। कहीं रह लेंगे हम अल्लाह वाले यतीमों को गरज़ है आरफी से।। तख़य्युल में है जिसके धूप यारों कहीं वो जल न् जाये चाँदनी से।। उन्हें कह दो न मक़तल से डराएं हम आते हैं मुहब्बत की गली से।। भले मुन्सिफ़ कचहरी झूठ की थी जो हम हारे तो सच की खामुशी से।। तो जाए घर बना ले आसमां पर अगर डरने लगा है बन्दगी से।। क़मर-ओ-शम्स की यारी से बचना तआरुफ़ है अगर आवारगी से।। छुपे रहते कभी रसवा न होते जो हम खुल के न् मिलते हर किसी से।। ग़ज़लगो मुत्तफ़िक़ हैं आज इस पर बचाना है अदब को साहनी से।। सुरेश साहनी, कानपुर
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कुछ सलीके के कारोबार करें। अब मुहब्बत को दरकिनार करें।। दिल लगाकर तो बेक़रार हुये आप कहते हो फिर क़रार करें।। किसके दौलतकदे पे सर रख दें किसकी सरमा से जाके प्यार करें।। और किसके लिए अदावत लें जब वो गैरों पे दिल निसार करें।। और फिर किसकी राह देखें हम और किस किसका इंतज़ार करें।। अपनी सांसों पे एतबार नहीं आप पर भी क्यों एतबार करें।। हम भी ग़ालिब को बोल दें चच्चा सिर्फ़ तसदीक़ जो ख़ुमार करें।। उन से कहिए नये अदीबों में साहनी को भी तो शुमार करें।।
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किसी के तीर पे अपनी कमान मत लादो। मैं बोल सकता हूँ अपने बयान मत लादो।। शुआयें शम्स की मेरा ख़याल रखती हैं सफर में मुझपे कोई सायबान मत लादो।। कहाँ लिखा है कि मज़हब बहुत ज़रूरी है ज़रा से दिल पे तुम अपना जहान मत लादो।। कहाँ से मैं तुम्हें फिरकापरस्त लगता हूँ मेरी जुबान पे अपनी जुबान मत लादो।। ये ज़िन्दगी भी कहाँ इम्तेहान से कम है सो मुझ पे और कोई इम्तेहान मत लादो।। जरा ज़मीन को करने तो दो कदमबोसी अभी से सर पे मेरे आसमान मत लादो।। खुशी से मर तो रहा है उस एक वादे पर कि साहनी पे नए इत्मिनान मत लादो।। सुरेश साहनी अदीब कानपुर 9451545132
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हमको इंग्लिश के रूल क्या मालूम। उनको देशी उसूल क्या मालूम।। वो तो हमको कबूल हैं हरदम हम हैं उनको कबूल क्या मालूम।। प्रेम पूजा है कारोबार नहीं क्यों गये लोग भूल क्या मालूम।। आज गोभी का फूल ले आये रोज़ डे फूल वूल क्या मालूम।। एक दिन किस डे एक दिन हग दे हमको ये ऊलजलूल क्या मालूम।। फ्रेंड्स शिप बैंड दे बहिन जी ने क्यों कहा हमको फूल क्या मालूम।। सुरेश साहनी, कानपुर 9451545132
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आसमानों को कद से क्या लेना। आशिक़ी को हसद से क्या लेना।। छुप के रहता है आसमानों में हम को उस ना-बलद से क्या लेना।। दिल्लगी है अगर तो हुज़्ज़त क्यों दिल को जद्दोजहद से क्या लेना।। हुस्न को ख़ुद अबद बनाता है इश्क़ है तो समद से क्या लेना।। फिर सनद की किसे ज़रूरत है इश्क़ को मुस्तनद से क्या लेना।। हुस्न हद में रहे रहे न रहे इश्क़ वालों को हद से क्या लेना।। तुम न मजनूँ हुए न समझोगे इश्क़ को ख़ाल-ओ-ख़द से क्या लेना।। हम हैं नाकिद-परस्त कुछ समझे हम को अहले-हमद से क्या लेना।। साहनी को यकीन है उस पर हम को उस की ख़िरद से क्या लेना।। हसद-ईर्ष्या, ना-बलद - विदेशी, अपरिचित, ईश्वर हुज़्ज़त- बहस, जद्दोजहद- यत्न, संघर्ष अबद- अमर समद - बेनयाज, अल्लाह, परवाह न करने वाला सनद-प्रमाणपत्र मुस्तनद- प्रमाण देने वाला , मान्य मजनूँ- दीवाना प्रेमी ख़ाल-ओ-ख़द - चेहरा मोहरा रूप नाकिद - आलोचक अहले-हमद - प्रशंसा करने वाला ख़िरद - बुद्धि सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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क़यामे-मुख़्तसर में ख़ाक़ लिखता।। ये किस्सा इक ठहर में ख़ाक़ लिखता।। तेरी ज़ुल्फ़े-परीशां की कहानी भला छोटी बहर में ख़ाक़ लिखता।। कहानी ज़िन्दगी के ज़ेरोबम की कोई फँस के भंवर में ख़ाक़ लिखता।। मुहब्बत को न आयी तंगनज़री तो नफ़रत के असर में ख़ाक़ लिखता।। ग़ज़लगोई तसल्ली मांगती है उधर उलझन थी सर में ख़ाक़ लिखता।। मेरा शायर गदायी था मिज़ाजन न् तुलना था गुहर में ख़ाक़ लिखता।। सुरेश अपनी कहानी कह रहा था भला मैं रात भर में ख़ाक़ लिखता।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132
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जब कभी आसमां निहारा कर। अपने पंखों को भी पसारा कर।। हुस्न ख़ुद को जहां संवारा कर। इश्क़ की राह भी बुहारा कर।। ज़िन्दगी के लिए ज़रूरी हैं अपने सपनों को यूँ न् मारा कर।। मंजिलें चल के पास आएंगी रास्तों की नज़र उतारा कर।। ख़्वाब ऊँचे ज़रूर रख लेकिन अपनी चादर में दिन गुज़ारा कर।। अपने होने पे नाज कर प्यारे अपनी हस्ती से मत किनारा कर।। फिर तकल्लुफ की क्या ज़रूरत है नाम लेकर मुझे पुकारा कर।। सुरेश साहनी कानपुर 9451545132