कवि Suresh Sahani  जी की कलम से बेहद खूबसूरत, उत्कृष्ट, अतुलनीय, अनुपम सृजन  ....


रामायण भी पढ़ते हो।

भाई से भी लड़ते हो।।


सदा भरत को गुनकर भी

पद के लिए झगड़ते हो।।


ब्रम्ह सत्य समझाते हो

धन के पीछे पड़ते हो।।


ठाठ धरे रह जाने हैं

किस के लिए अकड़ते हो।।


कभी स्वयं को ताड़े हो

बस औरों को तड़ते हो।।


दीनों हीनों दुखियों का

क्या तुम हाथ पकड़ते हो।।


इसी धरा पर आओगे

सुत सुरेश सम उड़ते हो।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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