छोड़कर राहों में अक्सर कारवाँ जाते रहे।
करके सूरज के हवाले सायबाँ जाते रहे।।
हो गये फौलाद हम अपने इरादों की तईं
लोग जो समझे थे हमको नातवां जाते रहे।।
बदगुमां थे कद को लेकर जाने कितने सरबुलन्द
पर ज़मीने-दोगज़ी में आसमाँ जाते रहे।।
बरकतें सब जाने किसकी बदनिगाही खा गई
अब नहीं आते हैं सारे मेहमां जाते रहे।।
सायबान- छाया देने वाले
कारवां- काफिला
नातवां- कमज़ोर
बदगुमां- भ्रमित
सरबुलन्द- ऊँचे लोग
ज़मीने-दोगज़ी - कब्र
बदनिगाही - बुरी निगाह
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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