अपने सरकार पढ़ नहीं पाते।
हैं तो सरदार पढ़ नहीं पाते।।
हम वो अशआर पढ़ नहीं पाते।
सच के अखबार पढ़ नहीं पाते।।
अब भी अहले क़लम की खुद्दारी
अहले दरबार पढ़ नहीं पाते।।
भर ज़हाँ की किताब पढ़ते हैं
इक मेरा प्यार पढ़ नहीं पाते।।
अबके मुंसिफ़ गुनाह करते हैं
ये गुनहगार पढ़ नहीं पाते।।
बातिलों को है डिग्रियाँ हासिल
जबकि हक़दार पढ़ नहीं पाते।।
आज भी एकलव्य कटते हैं
अब भी लाचार पढ़ नहीं पाते।।
आईने आदमी नहीं होते
आईने प्यार पढ़ नहीं पाते।।
साहनी को पढ़ा फकीरों ने
सिर्फ़ ज़रदार पढ़ नहीं पाते।।
सुरेश साहनी, कानपुर
945154512
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