जब आप भी थे करीब मेरे।
तो बन गये क्यों रक़ीब मेरे।।
अदूँ के जैसे जो दिख रहे थे
ये सब थे शायद हबीब मेरे।।
कि दौरे-गर्दिश में गुम हुए क्यों
जो बन रहे थे नसीब मेरे।।
रहेगा क़ायम ये ज़र्फ़ बेशक़
लदा है कांधे सलीब मेरे ।।
रहेगी गुरबत से जंग जब तक
है साथ इतने गरीब मेरे।।
सुरेश साहनी कानपुर
945154532
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