ज़िन्दगी का कारवाँ लुटता रहा।
धीरे धीरे सब ज़हाँ लुटता रहा।।
इस तरफ आबे-रवां लुटता रहा।
उस तरफ कोहे-गिरां लुटता रहा।।
गुल खिलें सब बुलबुलें गाती रहीं
और मेरा आशियाँ लुटता रहा।।
उनके हिस्से की ज़मीं बढ़ती गयी
और अपना आसमां लुटता रहा।।
लामकां सब चैन से सोते रहे
इक मेरे मन का मकां लुटता रहा।।
सब तमाशा देख कर खामोश थे
मैं था गोया रायगां लुटता रहा।।
चीखने पर कौन सुनता साहनी
मैं भी बनकर बेजुबां लुटता रहा।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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