माना सब तेरे दीवाने बैठे थे।

पर मुझको क्यों दुश्मन माने बैठे थे।।


आईने लेकर  अफ़साने बैठे थे।

किस पत्थर को हाल सुनाने बैठे थे।।


यारब उनको प्यार सिखाने बैठे थे।

जो आदम का  खून बहाने बैठे थे।।


उनकी रक़ाबत भी क्या केवल मुझसे थी

आख़िर वे सब किसको पाने बैठे थे।।


थे तो इश्क़ के मज़हब वाले हैरत है

फिर भी मुझ पर ख़ंजर ताने बैठे थे।।


तू जिन जिन की उम्मीदों का क़ातिल था

वे सब तुझको ईसा माने बैठे थे।।


पूछेंगे मौला से क्यों ख़ामोश रहे

या वो भी मुझको निपटाने बैठे थे।।


तीरे निगाहे नाज़ से हम महरूम रहे

क्या महफ़िल में और निशाने बैठे थे।।


दैरोहरम से हार गदाई लौट गए

अहले ख़ुदा जाकर मैखाने बैठे थे।।


तुम सुरेश सुकरात बनोगे मालूम था

क्यों दुनिया को सच समझाने बैठे थे।।

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