अब वो अपने सनम नहीं फिर भी।

बेवफ़ाई  का ग़म  नहीं  फिर भी।।


तेरा कूचा अदम नहीं फिर भी।

जान देने को कम नहीं फिर भी।।


आशिक़ी में नहीं मिले तगमे

ज़ख़्म सीने पे कम नहीं फिर भी।।


जब मिलोगे गले लगा लोगे

मुझको ऐसा वहम नहीं फिर भी।।


कैसे कह दें कि अब सिवा तेरे

और होंगे सनम नहीं फिर भी।।


यूज़ एंड थ्रो का अब ज़माना है

ऐसा कोई भरम नहीं फिर भी।।


जाने क्यों साहनी को पढ़ते हैं

उसकी ग़ज़लों में दम नहीं फिर भी।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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