किरदार तो मुझ  जैसे थे और ज़माने में।

पर उनकी थी दिलचस्पी इक मुझको सताने में।।


क्या खूब बहाना है सिजरे की तवीलाई

कोताह सही कुछ तो तुम कहते फ़साने में ।।


मैं याद न आया हूँ ऐसा तो नहीं होगा

झिझके तो ज़रूर होंगे तुम मुझको भुलाने में।।


गुलशन में हर इक गुल पर मँडराया किये भँवरे

बदनाम रहे कांटें गुलशन को बचाने में।।


सुरेश साहनी कानपुर

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