कुछ मुक़म्मल कुछ अधूरी ज़िन्दगी।
कट रही है यूँ ही पूरी ज़िंदगी।।
जी चुके तो और जीने की हवस
जबकि है श्रद्धा सबूरी ज़िन्दगी।।
किसलिए आयी गयी में कट गयी
थी अगर इतनी ज़रूरी ज़िन्दगी।।
हम उमस वाले हैं कोई उपनगर
आपकी ऊटी मसूरी ज़िन्दगी।।
मौत ठण्डी छाँव जैसे नीम की
और है साया खजूरी ज़िन्दगी।।
ओढ़ लेंगे मर के तहज़ीबे-कफ़न
मत सिखा नाहक़ शऊरी ज़िन्दगी।।
तेरे बिन जीना क़यामत है सुरेश
किस तरह है तुझ से दूरी ज़िन्दगी।।
सुरेश साहनी, अदीब कानपुर
9451545132
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