उफ़ ये ठण्डी धूप के दिन

आदमी को क्या सुकूँ दें

रात भी दहकी हुई ठिठुरन समेटे

जिंदगी जैसे जलाकर

राख करना चाहती है


जेब इतनी ढेर सारी

हैं पुरानी जैकेटों में

पर सभी ठंडी गुफायें

क्या हम अपने मुल्क में हैं!!!!


कौन है यह लोग जो फिर

लग्जरी इन गाड़ियों से

होटलों में , रेस्तरां में

जश्न जैसी हरकतों से

रात में भी पागलों से

शोर करते फिर रहे हैं।।


सुरेशसाहनी

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