क्या किसी को वक़्त बंजारा लगा।
क्यों ज़हाँ को मैं ही आवारा लगा।।
जाने कितनों ने मुझे वहशी कहा
सिर्फ़ इक लैला को बेचारा लगा।।
अश्क़ खारे हैं मेरे तस्लीम है
दिल का दरिया क्यों उन्हें खारा लगा।।
क्या मेरा इंसान होना ऐब था
मैं ही क्यों आसान सा चारा लगा।।
क्यों नहीं मैं अपना लग पाया उन्हें
जब मुझे अपना ज़हां सारा लगा।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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