कुछ ख़बर देने की बातें कर रहे थे लोग कुछ।
पैग भर देने की बातें कर रहे थे लोग कुछ।।
इन परिंदों से चरिंदों को भला है उज़्र क्या
पर कतर देने की बातें कर रहे थे लोग कुछ।।
क्या कोई सुकरात फिर पैदा हुआ है शहर में
फिर ज़हर देने की बातें कर रहे थे लोग कुछ।।
हमको है मालूम दावे इंतेखाबी थे मगर
क्या न कर देने की बातें कर रहे थे लोग कुछ।।
एक भूखा जानवर कैसे तड़पता देखते
ज़िब्ह कर देने की बातें कर रहे थे लोग कुछ।।
इसको रोटी इनको रोजी उनको कपड़ा साथ मे
सबको घर देने की बातें कर रहे थे लोग कुछ।।
खेत भूखों के लिए वादे में प्यासों के लिए
इक नहर देने की बातें कर रहे थे लोग कुछ।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
srshsahani@gmail.com
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