किसी सूरत भी क्यों ये काम कर दें।

तुम्हें हम किसलिये बदनाम कर दें।।

कभी बाज़ार की ज़ीनत न बनना

कहीं ख़ुद को न हम नीलाम कर दें।।साहनी

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