मीर बन गालिब के फन की ओर चल
हमनवा बन हमसुखन की ओर चल
वक्त का सूरज निकलने को है उठ
ख़्वाबगाहों से सहन की ओर चल
अंततः परदेश है परदेश ही
लौट ले अपने वतन की ओर चल।।
जिस्म है गोया पुराना पैरहन
अब नये इक पैरहन की ओर चल।।
साहनी लहजा पुराना छोड़ कर
अब नये तर्जे-कहन की ओर चल।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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