#ग़ज़ल


मेरी हर इल्तिज़ा को टाल गया।

काम अपना मगर निकाल गया।।

उससे कोई जबाब क्या मिलता

पूछ कर मुझसे सौ सवाल गया।।

इसमें कोई ख़ुशी की बात नहीं

उम्र का और एक साल गया।।

खिदमतें वालिदैन की करना

जानें कितनी बलायें टाल गया।।

लड़खड़ाये थे कुछ कदम लेकिन

एक ठोकर हमें सम्हाल गया।।

मेरी ख़ातिर हराम क्या है जब

शेख़ करके मुझे हलाल गया।।

सुरेशसाहनी, कानपुर

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